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सुनसान समाधि, जहाँ चिरनिद्रा में लीन हैं अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट दशरथ

अयोध्या/उत्तर प्रदेश (Ayodhya/Uttar Pradesh), देसी खबर (Desi Khabar), 11 जनवरी 2024, गुरुवार | रिपोर्ट - विजय मनोहर तिवारी : अयोध्या से अकबरपुर रोड पर 15 किलोमीटर दूर मुख्य मार्ग से बाईं ओर एक किमी अंदर विल्वहरि घाट नाम की एक ऐसी जगह है, जो गहन सन्नाटे से घिरी है। हर दिन अयोध्या आने वाले हजारों रामभक्तों में से किसी एक को आए भी हफ्तों हो जाते हैं। यहाँ न के बराबर ही कोई आता है। यह प्रभु श्रीराम के पिता चक्रवर्ती सम्राट दशरथ का समाधि स्थल है और अयोध्या में इकलौती ऐसी जगह है, जहाँ श्रीराम की कोई मूर्ति नहीं है। 

मैं दोपहर के समय जब पहुँचा तो पीढ़ियों से इस स्थान का रखरखाव कर रहे एक महंत परिवार के युवा संदीपदास अकेले गर्भगृह के द्वार पर बैठे मिले। आज कोई बाहर से आया, यह देखकर चहक उठे। उनके पास कहने को बहुत कुछ है और मैं केवल सुनने के लिए ही आया। 

परिसर के भीतर बाईं दीवार पर लोहे की एक रंगीन धुंधली प्लेट पर श्रीराम की जीवन यात्रा में आए करीब ढाई सौ स्थानों की सूची है, जो उत्तरप्रदेश, नेपाल, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू और श्रीलंका तक फैले हैं। रंगेपुते अहाते में एक घना वटवृक्ष सदियों से खड़ा है। आज वह अपनी ऊंचाई से दूर अयोध्या का उत्सव देख रहा है। संगमरमर के पत्थरों से जड़ी एक समाधि, जहाँ बाद में उनके चार पुत्रों के चरण चिन्ह अंकित किए गए होंगे। जंगरोधी काफी पुराने लोहे के त्रिशूलनुमा दो शस्त्र भूमि से उभरे हुए हैं, जो राजकुल की किसी महान् विभूति के यहाँ होने के प्रतीक हैं। 

मैं समाधि के निकट जा बैठा हूँ और वह प्रसंग आँखों में उभरा, जब प्रिय श्रीराम का राज्याभिषेक होते-होते रह गया होगा। 14 वर्ष के वनवास का विचार ही दशरथ को आघात की भांति लगा। वे सहन नहीं कर पाए। कौशल्या के महल में उनकी मृत देह रखी गई थी। अपने युवा होते सर्वाधिक योग्य और सबके प्रिय श्रीराम को अपना उत्तराधिकारी बनाकर वे राजकाज से मुक्त होना चाहते थे। वे न राज्याभिषेक देख पाए और न ही अपने संपूर्ण वंश को युगों तक अमरत्व देने वाले सबके आदर्श श्रीराम का कालजयी पराक्रम देख सके। वे अकेले पात्र हैं, जिनकी व्यथा इस समाधि के सन्नाटे में भीतर गहरी उतरती है।

पिता के रूप में दशरथ अकेले हैं, जिनके हिस्से में सबसे कम श्रीराम आए। अपने राम से वंचित वह विवश और वचनबद्ध पिता अयोध्या के महलों से दूर यहीं पंचतत्व में विलीन हो गया। अंतिम क्रिया के समय केवल भरत और शत्रुघ्न ही थे। समाधि के सामने मंदिर में एक ही मूर्ति में दशरथ के दाएँ-बाएँ उनके यही दोनों पुत्र उकेरे गए हैं। पास में महर्षि वशिष्ठ की प्रतिमा भी है, जो अंतिम समय में यहाँ थे। इसी स्थान से कभी देहमुक्त दशरथ ने 14 वर्ष बाद वनवास से लौटे प्रिय श्रीराम की आहट सुनी होगी। अबकी बार राम का वनवास पाँच सौ साल लंबा था। सम्राट ने यहीं से गोस्वामी तुलसी को रामचरित मानस रचते हुए देखा होगा। अयोध्या के नूतन स्वरूप को आज वे अदृश्य रूप में निहार रहे होंगे। अपने महाप्रतापी मर्यादा पुरुषोत्तम कुलगौरव श्रीराम की महिमा देखकर वे कितने हर्षित होंगे।

संदीपदास पद्मपुराण उठा लाए हैं, जिसके पृष्ठ 649 पर सम्राट दशरथ द्वारा शनिदेव की स्तुति का विवरण है। दस श्लोक हैं, जिनसे दशरथ शनि को प्रसन्न करते हैं और उन्हें तीन वरदान मिलते हैं। दशरथ माँगते हैं-हे शनिदेव, देवता, असुर, मनुष्य, पशु-पक्षी आप किसी को भी पीड़ा न दें। शनिवार को पड़ने वाली अमावस के दिन यहाँ परिसर में नवनिर्मित शनि मंदिर में लोग दशरथ की वही प्रभावशाली स्तुति दोहराने आते हैं। अनिष्ट से रक्षा की कामना के लिए। पाठ के बाद शनि के दर्शन सोने पर सुहागा माने जाते हैं। संदीपदास उदास मन से कहते हैं कि देश-दुनिया से लोग अयोध्या आते हैं। लेकिन जन्मभूमि स्थान के आसपास के मंदिरों और भवनों के दर्शन करके ही लौट जाते हैं। अयोध्या के पंडित भी नहीं बताते कि एक राजा दशरथ भी थे, प्रभु श्रीराम जिनके यहाँ जन्में। उनकी भी एक समाधि हैं, राम के बिछोह में जिनके प्राण निकले। कुछ न सही कोई दो पुष्प ही चढ़ाने आए। 

मगर इन दिनों इस क्षेत्र के लोग अत्यंत प्रसन्न भी हैं। अयोध्या के कायाकल्प में अकबर रोड सौ फुट चौड़ा हो गया है। अब आवागमन अधिक सुगम हो रहा है। धीरे-धीरे इस गुमनाम स्थान को भी अयोध्या के मानचित्र पर उभारा जा रहा है। दो साल पहले ही स्थानीय सांसद और विधायक ने मिलकर सौंदर्योकरण कराया है।

Deserted mausoleum, where Emperor Dashrath of Ayodhya is engrossed in eternal sleep.