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जब आडवाणी का जिक्र कर मंच पर आंसू नहीं रोक पाए पीएम मोदी!


नई दिल्ली, 18 फरवरी 2024, रविवार। नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा की गई। इसके बाद विपक्ष ने सरकार के इस फैसले को लेकर खूब सवाल किए। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर नरेंद्र मोदी की सरकार ने लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने की घोषणा क्यों की?

केंद्र सरकार ने कई गणमान्य व्यक्तियों को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने का ऐलान किया था, जिसमें बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर, पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव, पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन का नाम शामिल है।

बता दें कि बीते दिनों जिस तरह से पीएम मोदी ने लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न दिए जाने का ऐलान किया, उसके बाद सियासी गलियारों में कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई। यह चर्चाएं स्वाभाविक भी हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लाल कृष्ण आडवाणी का रिश्ता एक या दो नहीं, बल्कि कई दशक पुराना है। दोनों नेताओं के बीच आत्मीयता जगजाहिर है। वह और बात है कि वयोवृद्ध होने की वजह से अब आडवाणी पार्टी की गतिविधियों को लेकर सक्रिय नहीं रहते हैं, लेकिन आज भी उनकी प्रासंगिकता को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता।

सियासी विश्लेषक खुद इस बात को मानते हैं कि लाल कृष्ण आडवाणी का राजनीतिक सफर शानदार रहा है और उससे भी ज्यादा शानदार रहा है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनका रिश्ता। इस बीच साल 2014 का वो वाकया याद आता है, जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने कांग्रेस को पराजित कर शानदार जीत हासिल की थी।

इस जीत ने बीजेपी के सभी नेताओं को उत्साहित कर दिया था, जिसके बाद एक कार्यक्रम में लाल कृष्ण आडवाणी ने नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के अवसर को आजादी मिलने और आपातकाल खत्म होने से प्राप्त हुई अनुभूति से जोड़ा था। यही नहीं, उस वक्त आडवाणी ने यहां तक कह दिया था कि नरेंद्र भाई ने हम सभी पर कृपा की है, जिस पर पीएम मोदी ने आपत्ति जताते हुए कहा कि आप मेरे लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल ना करें और इसके बाद वो भावुक हो गए थे।

वहीं, पीएम मोदी के भावुक होने के बाद कार्यक्रम में मौजूद कोई भी शख्स अपनी आंखों से आंसू नहीं रोक पाया था।

लाल कृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को एक संपन्न हिंदू परिवार में हुआ था। इसके बाद वो 1947 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक में शामिल हो गए। उन दिनों की घटी घटनाओं को उन्होंने बेहद ही करीब से देखा। इसके बाद हालात कुछ ऐसे बन गए कि वो अपने परिवार के साथ सितंबर 1947 में दिल्ली आ गए। इस बीच 30 जनवरी 1947 को महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई। हत्या का आरोप आरएसएस पर लगा। हालांकि, बाद में आरएसएस को इन आरोपों से मुक्त कर दिया गया, लेकिन इस दौरान आडवाणी को तीन महीने जेल में बिताने पड़े थे।

वहीं, आडवाणी अपने कुशल राजनीतिक कौशल की वजह से पंडित दीन दयाल उपाध्याय के करीब आ गए। इसके बाद उन्हें राजस्थान में आरएसएस की कमान सौंपी गई। 1952 में हुए पहले आम चुनाव में आडवाणी ने राजनीतिक गतिविधियों को विस्तार से समझने का प्रयास किया। इसके बाद 1970 में लाल कृष्ण आडवाणी को जनसंघ ने राज्यसभा सीट के लिए चुना। 1975 में इंदिरा सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल में गिरफ्तार हुए तमाम नेताओं में लाल कृष्ण आडवाणी भी शामिल थे। उन दिनों तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान में कुछ संशोधन किए थे, जिस पर लाल कृष्ण आडवाणी ने निराशा व्यक्त की थी और उन्होंने इस तथ्य को अपनी पुस्तक एक ‘ए प्रिजनर स्क्रैप-बुक’ में भी शामिल किया।

आपातकाल के दौरान आडवाणी 19 महीने जेल में रहे। वहीं, जेल से बाहर आने के बाद अपने राजनीतिक जीवन में आडवाणी ने कई सियासी उठापटक का दौर देखा। 1980 में जनसंघ की जगह भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई, जिसके संस्थापक सदस्यों में आडवाणी भी शामिल थे। इसके बाद 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हुई। इसके बाद राजीव गांधी की अगुवाई में हुए चनाव में कांग्रेस ने प्रचंड जीत हासिल की। वहीं, बीजेपी को महज दो सीटों पर जीत हासिल हुई। 1986 में अटल बिहारी वाजपेयी ने लाल कृष्ण आडवाणी को बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया।

अटल बिहारी वाजपेयी की एक खास बात थी कि वो हमेशा ही युवा कार्यकर्ताओं को तरजीह देते थे। उन्होंने कई युवा कार्यकर्ताओं को फ्रंटफुट पर लाकर खड़ा किया। इन्हीं युवा कार्यकर्ताओं में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं। 25 नवंबर 1990 यह तारीख भारतीय राजनीति में बहुत ज्यादा मायने रखती है। इसी दिन लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में रथ यात्रा निकली थी, जिसे अपार जनसमर्थन मिला था। गुजरात में रथ यात्रा के संयोजक खुद नरेंद्र मोदी थे।

इस यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी लाल कृष्ण आडवाणी के सारथी बने। बिहार में लाल कृष्ण आडवाणी की यात्रा पहुंची तो वहां लालू प्रसाद यादव की सरकार ने उसे रोक दिया। यही नहीं, उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया, जिसके बाद उनके समर्थकों ने इस गिरफ्तारी के विरोध में अयोध्या की ओर कूच किया। जिसके बाद उन पर गोलियां चलाई गईं, जिसमें कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इसके बाद 6 दिसंबर 1992 में बड़ी संख्या में कारसेवक अयोध्या में एकत्रित हुए। लेकिन, इस दिन प्रशासन जनाक्रोश पर नियंत्रण करने में नाकाम रही जिसके बाद बाबरी मस्जिद (विवादित ढांचे) को ध्वस्त कर दिया गया।

भीड़ को उकसाने के आरोप में लाल कृष्ण आडवाणी के साथ बीजेपी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। यह मामला 2020 तक चला। लेकिन, इसके बाद अदालत ने उनको उनके ऊपर लगे सभी आरोपों से मुक्त कर दिया। इस दौरान लाल कृष्ण आडवाणी ने कई राजनीतिक उथल-पुथल देखे। उन्होंने साल 2014 में मोदी युग में प्रवेश किया। जहां उन्होंने गांधीनगर से अपना अंतिम कार्यकाल पूरा किया। आज आडवाणी राजनीतिक मोर्चे पर सक्रिय नहीं हैं, लेकिन आडवाणी भाजपा के सभी नेताओं को अपना सुझाव हमेशा देते रहते हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में आडवाणी को पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था, तो वहीं अब दूसरे कार्यकाल में भारत रत्न से सम्मानित किए जाने का फैसला किया गया है।

When PM Modi could not stop tears on the stage while mentioning Advani!