खंडहरों में दबी इतिहास की आवाज़! धरोहर बन कर भी उपेक्षित मिथिला के राजनगर की अनकही कहानी

मधुबनी/बिहार (Madhubani/Bihar), 18 अप्रैल 2025, शुक्रवार : विश्व धरोहर दिवस के अवसर पर जब पूरी दुनिया अपनी ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजने की बात कर रही है, तब मिथिला की धरती पर बसा एक ऐसा ऐतिहासिक कस्बा गुमनामी के अंधेरे में सिसक रहा है, जिसे सरकार ने वर्षों से अनदेखा किया है। मधुबनी से मात्र 13 किलोमीटर दूर नेपाल की सीमा से सटा राजनगर, आज खंडहरों में तब्दील हो चुका है, लेकिन इसके भग्नावशेष आज भी मिथिला के गौरवशाली अतीत की गवाही देते हैं।
राजनगर में स्थित महलों के खंडहर पुर्तगाली, इटैलियन और हिंदू वास्तुकला के अनूठे संगम का जीवंत प्रमाण हैं। कहा जाता है कि ब्रिटिश वास्तुकार एम.ए. कोरनी ने यहाँ एशिया में पहली बार सीमेंट का प्रयोग किया था—भले ही इसकी ऐतिहासिक पुष्टि न हो, किंतु मिथिला या बिहार के संदर्भ में यह दावा महत्वपूर्ण हो सकता है।
दरभंगा राज के महाराज रामेश्वर सिंह ने राजनगर को एक समृद्ध नगर बनाने का सपना देखा था। वर्ष 1926 में 11 लाख रुपये की लागत से बना यह राजप्रसाद 1934 में आए भयंकर भूकंप में ध्वस्त हो गया। विडंबना यह है कि इस त्रासदी का केंद्र भी यही क्षेत्र था। भूकंप और समय की मार ने इस ऐतिहासिक परिसर को खंडहर में बदल दिया और सरकार की बेरुखी ने इसके पुनर्जीवन की हर संभावना को कुचल डाला।

राजनगर के राजप्रसाद में नौलखा महल, काली मंदिर, कामाख्या मंदिर, गिरजा मंदिर, हाथी महल, रानी महल, मोती महल और कई दक्षिणमुखी मंदिरों का निर्माण हुआ था। यह क्षेत्र तंत्र साधना का केंद्र भी रहा है। कभी यहां हाथ से खींचकर चलने वाली एक लिफ्ट भी थी, जिसे स्थानीय लोग "फांसी घर" कहते थे—जो उस दौर की तकनीकी सोच का भी परिचायक है।

आज ये महल जैसे जैसे ढहते जा रहे हैं, वैसे ही उनके साथ जुड़ी कहानियाँ, भावनाएँ और सपने भी धूल में मिलते जा रहे हैं। हर ईंट, हर सीमेंट का कण मानो अपने निर्माता की आकांक्षाओं और मेहनत की गवाही देता है।

मिथिला का यह दुर्भाग्य ही है कि यहां की बहुमूल्य धरोहरें सरकार की उपेक्षा का शिकार होती रही हैं। मिथिला पेंटिंग के अलावा इस क्षेत्र की पहचान अन्य सांस्कृतिक धरोहरों से भी हो सकती थी, यदि इन्हें सहेजने की कोशिशें हुई होतीं।
आज ज़रूरत है कि सरकार इन ऐतिहासिक धरोहरों की सुध ले, उन्हें संरक्षित करे और राजनगर जैसे स्थलों को पर्यटन के नक्शे पर स्थान दिलाए। वरना वह दिन दूर नहीं जब यह समृद्ध अतीत सिर्फ किस्से-कहानियों में सिमट कर रह जाएगा। विश्व धरोहर दिवस पर एक पुकार है ये—मिथिला के अतीत को मिटने से बचा लीजिए।
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