नई दिल्ली, 16 दिसंबर। सर्दी का मौसम जहां आम लोगों के लिए सुहावना माना जाता है, वहीं अस्थमा और सांस संबंधी रोगों से जूझ रहे मरीजों के लिए यह समय कई तरह की चुनौतियां लेकर आता है। ठंडी और शुष्क हवा का सीधा असर श्वसन तंत्र पर पड़ता है, जिससे श्वास नलियों में सूजन बढ़ जाती है और वायुमार्ग संकुचित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में अस्थमा का दौरा पड़ने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
मौसम बदलते ही अस्थमा रोगियों में सीने में जकड़न, सांस लेते समय घरघराहट, बार-बार खांसी, रात के समय सांस फूलना और सुबह के वक्त अधिक परेशानी जैसी शिकायतें बढ़ने लगती हैं। कई मरीजों को इनहेलर की आवश्यकता पहले से ज्यादा महसूस होने लगती है, जिससे उनकी दिनचर्या और नींद दोनों प्रभावित होती हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, सर्दियों के मौसम में वात और कफ दोष का प्रकोप बढ़ जाता है। अस्थमा को आयुर्वेद में ‘तमक श्वास’ कहा गया है, जिसमें कफ के कारण श्वास नलियां अवरुद्ध हो जाती हैं और वात के असंतुलन से सांस लेने में कठिनाई उत्पन्न होती है। ऐसे में इस मौसम में वात और कफ को संतुलित रखना बेहद जरूरी माना जाता है।
आयुर्वेद में अस्थमा से बचाव और राहत के लिए कुछ सरल लेकिन प्रभावी उपाय बताए गए हैं, जिन्हें रोजमर्रा की जीवनशैली में अपनाकर समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, सर्दियों में हमेशा गुनगुना पानी पीना चाहिए और ठंडे पानी या पेय पदार्थों से पूरी तरह परहेज करना चाहिए। सुबह खाली पेट भाप लेना फेफड़ों के लिए लाभकारी होता है। भाप में तुलसी की पत्तियां या अजवाइन मिलाने से इसका असर और भी बेहतर हो जाता है।
इसके अलावा शहद और अदरक का नियमित सेवन कफ को कम करने में मदद करता है और सांस लेने की परेशानी को दूर करता है। खानपान में गर्म सूप, काढ़ा और हल्का भोजन शामिल करना चाहिए, जबकि दही, ठंडी चीजें और भारी भोजन से दूरी बनाए रखना जरूरी है। रात का खाना हल्का और समय पर लेने की सलाह दी जाती है, ताकि पाचन तंत्र पर अतिरिक्त दबाव न पड़े।
सिर्फ खानपान ही नहीं, बल्कि जीवनशैली में कुछ बदलाव भी अस्थमा रोगियों के लिए राहतदायक साबित हो सकते हैं। सुबह के समय ठंडी हवा में बाहर निकलने से बचें और यदि निकलना जरूरी हो तो मुंह व नाक को स्कार्फ या मास्क से ढककर रखें। धूम्रपान, धूल, धुआं और प्रदूषण से दूरी बनाए रखना बेहद आवश्यक है। साथ ही अचानक ठंडी जगह से गर्म और गर्म जगह से ठंडी जगह जाने से भी बचना चाहिए। हल्का प्राणायाम जैसे अनुलोम-विलोम लाभदायक हो सकता है, लेकिन इसे करते समय शरीर पर अधिक जोर नहीं डालना चाहिए।
विशेषज्ञों का कहना है कि सर्दियां अस्थमा रोगियों के लिए सबसे संवेदनशील समय होता है। थोड़ी सी सावधानी, संतुलित दिनचर्या और सही खानपान अपनाकर अस्थमा के अटैक को काफी हद तक रोका जा सकता है। हालांकि, यदि सांस लेने में अत्यधिक परेशानी हो, नींद बार-बार टूटने लगे या इनहेलर से भी राहत न मिले, तो बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है।
आयुर्वेदिक उपाय अपनाने से पहले किसी योग्य वैद्य या चिकित्सक से सलाह लेना भी आवश्यक माना जाता है, ताकि उपचार सुरक्षित और प्रभावी हो सके।
मौसम बदलते ही अस्थमा रोगियों में सीने में जकड़न, सांस लेते समय घरघराहट, बार-बार खांसी, रात के समय सांस फूलना और सुबह के वक्त अधिक परेशानी जैसी शिकायतें बढ़ने लगती हैं। कई मरीजों को इनहेलर की आवश्यकता पहले से ज्यादा महसूस होने लगती है, जिससे उनकी दिनचर्या और नींद दोनों प्रभावित होती हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, सर्दियों के मौसम में वात और कफ दोष का प्रकोप बढ़ जाता है। अस्थमा को आयुर्वेद में ‘तमक श्वास’ कहा गया है, जिसमें कफ के कारण श्वास नलियां अवरुद्ध हो जाती हैं और वात के असंतुलन से सांस लेने में कठिनाई उत्पन्न होती है। ऐसे में इस मौसम में वात और कफ को संतुलित रखना बेहद जरूरी माना जाता है।
आयुर्वेद में अस्थमा से बचाव और राहत के लिए कुछ सरल लेकिन प्रभावी उपाय बताए गए हैं, जिन्हें रोजमर्रा की जीवनशैली में अपनाकर समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, सर्दियों में हमेशा गुनगुना पानी पीना चाहिए और ठंडे पानी या पेय पदार्थों से पूरी तरह परहेज करना चाहिए। सुबह खाली पेट भाप लेना फेफड़ों के लिए लाभकारी होता है। भाप में तुलसी की पत्तियां या अजवाइन मिलाने से इसका असर और भी बेहतर हो जाता है।
इसके अलावा शहद और अदरक का नियमित सेवन कफ को कम करने में मदद करता है और सांस लेने की परेशानी को दूर करता है। खानपान में गर्म सूप, काढ़ा और हल्का भोजन शामिल करना चाहिए, जबकि दही, ठंडी चीजें और भारी भोजन से दूरी बनाए रखना जरूरी है। रात का खाना हल्का और समय पर लेने की सलाह दी जाती है, ताकि पाचन तंत्र पर अतिरिक्त दबाव न पड़े।
सिर्फ खानपान ही नहीं, बल्कि जीवनशैली में कुछ बदलाव भी अस्थमा रोगियों के लिए राहतदायक साबित हो सकते हैं। सुबह के समय ठंडी हवा में बाहर निकलने से बचें और यदि निकलना जरूरी हो तो मुंह व नाक को स्कार्फ या मास्क से ढककर रखें। धूम्रपान, धूल, धुआं और प्रदूषण से दूरी बनाए रखना बेहद आवश्यक है। साथ ही अचानक ठंडी जगह से गर्म और गर्म जगह से ठंडी जगह जाने से भी बचना चाहिए। हल्का प्राणायाम जैसे अनुलोम-विलोम लाभदायक हो सकता है, लेकिन इसे करते समय शरीर पर अधिक जोर नहीं डालना चाहिए।
विशेषज्ञों का कहना है कि सर्दियां अस्थमा रोगियों के लिए सबसे संवेदनशील समय होता है। थोड़ी सी सावधानी, संतुलित दिनचर्या और सही खानपान अपनाकर अस्थमा के अटैक को काफी हद तक रोका जा सकता है। हालांकि, यदि सांस लेने में अत्यधिक परेशानी हो, नींद बार-बार टूटने लगे या इनहेलर से भी राहत न मिले, तो बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है।
आयुर्वेदिक उपाय अपनाने से पहले किसी योग्य वैद्य या चिकित्सक से सलाह लेना भी आवश्यक माना जाता है, ताकि उपचार सुरक्षित और प्रभावी हो सके।
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