जब-जब तानाशाह बुलंद होगा, गाँधी जीवित हो जायेंगे : धनंजय

(भारतीय नोटों से गाँधी जी की तस्वीर हटाने की परिचर्चा के बीच पढ़ें राजनीतिक विश्लेषक धनंजय कुमार सिन्हा का यह आलेख) 


चर्चा चल रही है कि भारतीय नोटों से महात्मा गाँधी की तस्वीर हटाई जायेगी। हटाने की मंशा रखने वाली आरएसएस, भाजपा और वर्तमान केन्द्र सरकार के नेताओं का मानना है कि गाँधी को नोटों से हटाकर उन्हें कुछ हद तक मिटाया जा सकेगा, जबकि दूसरी तरफ हटाने का विरोध करने वाली कांग्रेस, इंडिया गठबंधन के अन्य दलों के नेताओं एवं तथाकथित अन्य धर्मनिरपेक्ष नेताओं का मानना है कि गाँधी की तस्वीर को नोटों से हटाना गलत है, यह गाँधी को मिटाने का प्रयास है, यह एक अन्यायपूर्ण एवं अनर्थकारी कदम होगा।  दोनों ही पक्षों के विशेषज्ञ अपने-अपने पक्ष में तरह-तरह के तर्क-कुतर्क प्रस्तुत कर रहे हैं। 

प्रश्न 1 :
पर क्या कभी किसी ने इस बात की कल्पना भी की है कि अगर गाँधी जी के जीते-जी उनसे यह पूछा जाता कि भारत सरकार उनकी तस्वीर नोटों पर छापना चाहती है तो वे क्या जवाब देते ? यह निश्चित है कि उनका जवाब "ना" में ही होता। 

प्रश्न 2 :
क्या नोटों पर तस्वीर की वजह से ही गाँधी अब तक अनेकों भारतीयों के जेहन में जिंदा हैं ? तो फिर अन्य देशों में गाँधी कैसे अब तक जिंदा हैं जहाँ की नोटों पर उनकी तस्वीर नहीं है ? 

प्रश्न 3 :
सवाल यह भी है कि आजादी के बाद और गाँधी की मृत्यु के बाद भारतीय सरकारों ने गाँधी के विचारों और भारतीय संविधान को घर-घर आम जनों तक पहुंचाने के लिये क्या-क्या कदम उठाये, और कितने मन से कदम उठाये ? 

हकीकत यह है कि गाँधी सिर्फ अपने विचारों के कारण ही नहीं, बल्कि उन विचारों को अपने व्यक्तित्व में उतारने के कारण अब तक जिंदा हैं, और इसलिए वे सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में जिंदा हैं। 

न नोटों पर रखने से गाँधी अमर हैं, और न ही नोटों से हटाने से गाँधी मिटने वाले हैं। गाँधी अपने विचार और अपने उन विचारों को अपने व्यक्तित्व ढ़ालने की वजह से जिंदा हैं, किसी सरकार के समर्थन और विरोध के कारण नहीं। 

इसलिए यह व्यर्थ का राजनीतिक षड्यंत्रकारी विवाद है कि एक पक्ष गाँधी को नोटों से हटाना चाहता है तो दूसरा पक्ष बचाना चाहता है। दोनों ही पक्ष इस राजनीतिक षड्यंत्र के जाने-अनजाने हिस्सेदार हैं, और अपने-अपने राजनीतिक हितों को साधने और जनता को भरमाने के उद्देश्य से तर्क-कुतर्क कर रहे हैं। 

कुछ लोग तो असंतुलित समझ की वजह से भ्रम में आकर समर्थन या विरोध कर रहे हैं। कुछ लोगों को सच में लगता है कि गाँधी को नोटों से हटाने से वे मिट जायेंगे, और कुछ लोगों को सच में यह लगता है कि गाँधी को नोटों पर बचाने से ही वे बच पायेंगे। पक्ष और विपक्ष के कुछ लोग इस राजनीतिक षड्यंत्रकारी कुचक्र को चला रहे हैं, और कुछ लोग इस कुचक्र में फंसकर पक्ष-विपक्ष में तर्क-कुतर्क कर रहे हैं। 

गाँधी का किसी भी परिस्थिति में कुछ नहीं बिगड़ने वाला है। हाँ, अगर कुछ लोग वास्तव में गहराई से समाज के लिये कुछ करना चाहते हैं तो उनके लिये बेहतर है कि वे गाँधी के विचार और व्यक्तित्व का अनुशरण करें। 

और जो लोग गाँधी को नोटों से हटाना चाहते हैं, और ऐसा करके गाँधी को मिटाना चाहते हैं, उनकी इस अज्ञानता का भ्रम भी उसी दिन टूट जायेगा जिस दिन वे इस काम को करेंगे। 

गाँधी अपने विचारों, और उससे भी ज्यादा अपने व्यक्तित्व के कारण अमर हैं, और अमर रहेंगे। 

जब-जब दुनिया के किसी भी समाज-देश में तानाशाह बुलंद होगा, गाँधी वहाँ स्वतः प्रासंगिक और जीवित हो जायेंगे।

भारत में गाँधी के प्रासंगिक और पुनः जीवित होने का समय आ गया है। 

- धनंजय कुमार सिन्हा 

(श्री सिन्हा सोशलिस्ट पार्टी - इंडिया के बिहार प्रदेश अध्यक्ष होने के साथ-साथ राजनीतिक विश्लेषक के रूप में भी जाने जाते हैं।)
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