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सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष के लिए भी चुनौती बन सकती है राहुल गांधी की न्याय यात्रा


लखनऊ/उत्तर प्रदेश, 7 जनवरी 2024। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस नेता और लोकसभा सांसद राहुल गांधी एक बार फिर भारत न्याय यात्रा निकालने जा रहे हैं। यह यात्रा करीब 11 दिन उत्तर प्रदेश में रहेगी। जानकारों का मानना है कि उनकी यह यात्रा सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष के लिए भी चुनौती बन सकती है। राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि इसके रूट प्लान से साफ है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी फिर से उत्तर प्रदेश की राजनीति पर फोकस कर रहे हैं। वे इसी बहाने अमेठी भी लौट रहे हैं।

इस यात्रा के दौरान सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष का इस बात पर ध्यान रहेगा कि राहुल गांधी का उत्तर और दक्षिण की राजनीति को लेकर जनता के बीच क्या स्टैंड रहता है और वे यात्रा के दौरान इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों को कितना साथ लेकर चल पाते हैं। इसके अलावा, अयोध्या में बने माहौल के बीच उन्हें सनातन पर भी अपना रुख स्पष्ट करना होगा। साथ ही स्टालिन की पार्टी के गठबंधन की बात को भी सही साबित करना होगा।

'भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ का जो रूट मैप जारी किया है। उसमें राहुल गांधी सबसे ज्यादा समय उत्तर प्रदेश में गुजारेंगे। यूपी में वह 11 दिन में 1,074 किलोमीटर की यात्रा तय करेंगे। इस दौरान 20 जिलों की 23 लोकसभा सीटों को छुएंगे। राहुल गांधी यूपी में चंदौली से प्रवेश करेंगे और उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी होते हुए अपने गढ़ अमेठी और रायबरेली पहुंचेगे।

भारत न्याय यात्रा जिन राज्यों से गुजरेगी, वहां कांग्रेस और 'इंडिया' के सहयोगियों से सीटों का तालमेल एक बड़ी चुनौती है। जिन राज्यों में कांग्रेस और इंडिया के सहयोगी दलों में शामिल दलों के बीच सीटों का तालमेल एक बड़ा मुद्दा हैं।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि पार्टी जिन सीटों पर चुनाव लड़ने की सोच रही उन्हीं 22 जिलों से राहुल गांधी की यात्रा गुजरेगी। इसी कारण कांग्रेस अपनी फोकस सीटों के रास्ते से राहुल गांधी को ले जाने का प्लान बनाया है। पूर्वांचल से लेकर अवध, रुहेलखंड से पश्चिमी यूपी और बृज क्षेत्र तक को मथने की रणनीति है।

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस की प्रदेश इकाई कई सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। वहीं गठबंधन से बात करने के लिए बनी समिति ने करीब दो दर्जन सीटें छांटी हैं, जिन पर वह मजबूत दावा पेश करेगी। साथ में यह भी कहा है कि भाजपा को हराने के लिए दोनों दल पूरी तरह साथ आएंगे तभी बात बनेगी। लेकिन यह साथ केवल कहने के लिए नहीं होना चाहिए, बल्कि सीटों में उसे भी बड़ी हिस्सेदारी देनी पड़ेगी।

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अंशू अवस्थी कहते हैं कि राहुल गांधी की पहले निकल चुकी भारत जोड़ो यात्रा ने पूरे देश में व्यापक असर डाला था। इस बार की भारत जोड़ो न्याय यात्रा उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 11 दिन रहकर 1,074 किलोमीटर का सफर तय करेगी। इस दौरान यह बनारस से शुरू होकर आगरा पहुंचकर लगभग पूरे प्रदेश के सभी अंचलों में पहुंच जाएगी। इस यात्रा से प्रदेश के सभी वर्गों में इसका व्यापक असर होगा। हमारे इंडिया गठबंधन के सहयोगी सपा आरएलडी या अन्य दलों से भी उम्मीद है कि वह सब यात्रा को अपना भरपूर समर्थन देंगे। यह न्याय यात्रा प्रदेश के 2024 के चुनाव में कांग्रेस सहित पूरे इंडिया गठबंधन को ताकत देगी।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि भारत जोड़ो न्याय यात्रा के जरिए राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में मरणासन्न पड़ी कांग्रेस को जिंदा करने की पूरी कोशिश करेंगे। न्याय यात्रा सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष के लिए भी चुनौती बनेगी, क्योंकि सपा और कांग्रेस के बीच शुरू हुई तकरार भले ही सार्वजनिक क्षेत्र में न दिख रही हो, लेकिन अंदर खाने में टकराव से इनकार नहीं किया जा सकता। तीन राज्यों के चुनाव हारने के बाद कांग्रेस के ऊपर क्षेत्रीय दलों का दबाव होगा। वैसे भी अखिलेश यादव ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है। उन्होंने अंदर खाने कई उम्मीदवार भी तय कर रखे है। चूंकि यह यात्रा पूरी तरह राजनीतिक है इस कारण इसके बयान और गठबंधन पर लेकर आगे की भूमिका क्या होगी इस पर विपक्षी दलों की पूरी नजर रहेगी।

रावत कहते हैं कि भाजपा अयोध्या में राम मंदिर के सहारे माहौल को गरमाने में लगी है‌। 22 तारीख को प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद देशभर से राम भक्तों का अयोध्या आने का सिलसिला शुरू हो जाएगा। इससे उत्तर भारत में भाजपा के पक्ष में हिंदू वोटरों की लामबंदी का माहौल बनता दिख रहा है। ऐसे में राहुल गांधी के सामने अयोध्या के सहारे पैदा किये जा रहे हिंदुत्व की नई लहर को रोक पाने की बड़ी चुनौती होगी।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि भारत जोड़ो यात्रा का प्रभाव उन्हीं जिलों पर पड़ा था जहां से यात्रा गुजरी थी। क्योंकि यह यात्रा मध्यप्रदेश और राजस्थान भी गई वहां पर कुछ इसका विशेष असर नहीं दिखा। कर्नाटक में बदलाव की बयार बह रही थी जिस कारण वहां पर कांग्रेस की सरकार बन गई। इसका पूरा प्रभाव प्रदेश में नहीं पड़ता है। इस तरह की यात्रा जब तक बहुत व्यापक उद्देश्य के साथ नहीं चलती है, तब तक राजनीतिक असर नहीं होता है। 2012 में अखिलेश यादव ने जो यात्रा निकाली थी, सपा का प्रभाव पूरे प्रदेश में था। उस समय लोग मायावती से बदलाव चाहते थे। उन्होंने अपने को विकल्प के तौर पर प्रस्तुत किया था, जिस कारण उन्हें सफलता मिली थी।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस अपने को बड़े विकल्प के तौर पर अभी तक प्रोजेक्ट नहीं कर पा रही है। इंडिया गठबंधन के जो आंतरिक गतिरोध हैं, उसके कारण कांग्रेस ऐसा कर भी नहीं पाएगी। इसी कारण कांग्रेस से लोगों को बहुत अपेक्षा नहीं है। इसका प्रभाव बहुत सीमित रहेगा। एक-दो जिलों के बाद यह तय हो जायेगा कि इसमें स्थानीय लोगों का कितना जुड़ाव है। उसके बाद अन्य दल तय करेंगे कि इस यात्रा को कितनी गंभीरता से लिया जाए।

रतनमणि लाल कहते हैं कि इस यात्रा में राहुल गांधी के बयानों पर भी नजर होगी। एक बात तो तय है कि सिर्फ यात्रा किसी चुनाव का पैमाना नहीं हो सकती है।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता आनंद दुबे ने इस यात्रा को लेकर कहा कि कांग्रेस लगातार राहुल गांधी को रीलांच करने की कोशिश करती रहती है। लेकिन वह सफल नहीं हो पा रही है। पहले से जुड़े देश को वह फिर जोड़ने निकले हैं। उनकी पहली यात्रा विफल रही है। जिन लोगों ने 70 साल तक जनता के साथ अन्याय किया है, वे न्याय यात्रा निकाल रहे हैं। आने वाले समय में कांग्रेस सिर्फ पुरातात्विक समाग्री बनकर रहेगी जो इतिहास में पढ़ाने के काम आयेगी।

Rahul Gandhi's Nyaya Yatra can become a challenge for the ruling party as well as the opposition.