आलेख : धनंजय कुमार सिन्हा
संस्थापक, अमन समिति
इक्कीसवीं सदी में राजनीतिक पदयात्रा का श्रेय प्रशांत किशोर को जाता है। उन्होंने मई 2022 में अपनी पदयात्रा की घोषणा की और बताया कि वह 2 अक्टूबर 2022 से बिहार के भितिहरवा (पश्चिम चंपारण) से पदयात्रा शुरू करेंगे और बिहार के सभी जिलों तक जाएंगे। इसके बाद, अगस्त 2022 में राहुल गांधी ने 'भारत जोड़ो यात्रा' की घोषणा की किंतु उन्होंने प्रशांत किशोर से भी पहले 7 सितंबर 2022 से ही अपनी देशव्यापी पदयात्रा शुरू कर दी, जो कई चरणों में चली। कई लोगों का मानना है कि इन यात्राओं से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की छवि पहले की तुलना में मजबूत हुई।
2 अक्टूबर 2022 को बिहार के भितिहरवा (पश्चिम चंपारण) से प्रशांत किशोर की पदयात्रा शुरू होने के बाद यह पूरे देश में राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र के लोगों के लिए आकर्षण और चर्चा का विषय बन गई। कुछ लोगों का मानना है कि इस यात्रा से प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) को भी राजनीतिक लाभ हुआ है।
इसके बाद, बिहार और देश के कई अन्य हिस्सों में राजनीतिक और सामाजिक संगठनों द्वारा छोटी-छोटी पदयात्राएं आयोजित की गईं। अब कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) भी बिहार में पदयात्रा शुरू करने जा रहे हैं। वे 16 मार्च 2025 को भितिहरवा (पश्चिम चंपारण) से पदयात्रा शुरू करके लगभग 20 जिलों से गुजरते हुए एक महीने में पटना पहुंचेंगे। इसे बिहार कांग्रेस (Bihar Congress) को पुनर्जीवित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
क्या पदयात्राओं का कोई वास्तविक प्रभाव पड़ता है?
इक्कीसवीं सदी की इन राजनीतिक पदयात्राओं के संदर्भ में गांधीवादी प्रोफेसर विजय कुमार की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण मानी जा सकती है। वे कहते हैं कि इन यात्राओं का आम मजदूर, किसान और निम्न आर्थिक वर्ग के लोगों पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता। न तो वे इन यात्राओं से प्रभावित होते हैं और न ही उन्हें इससे कोई ठोस लाभ मिलता है।
गांधीवादी प्रोफेसर विजय कुमार का तर्क है कि सुख-सुविधाओं से लैस अमीर नेता, उद्योगपति और उच्च आर्थिक वर्ग के लोग इस तरह की पदयात्राओं को देखकर प्रभावित हो सकते हैं कि कैसे कोई व्यक्ति इतनी लंबी दूरी पैदल तय कर रहा है। लेकिन वे लोग, जो प्रतिदिन पैदल ही अपने कामों के लिए चलते हैं—चाहे वह मजदूर हों, किसान हों या सामान्य छात्र—वे किसी अन्य व्यक्ति या नेता के पैदल चलने मात्र से कैसे प्रभावित हो सकते हैं?
राजनीतिक और चुनावी दृष्टिकोण से भी यह विचारणीय है कि वातानुकूलित कमरों में बैठने वाले नेता, उद्योगपति और उच्च आर्थिक वर्ग के लोगों की संख्या कितनी है, और दूसरी ओर, निम्न एवं निम्न-मध्यम वर्ग के लोग कितने हैं, जो हर दिन पैदल चलते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में मुफ्त राशन पाने वालों की संख्या करोड़ों में है, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में निम्न एवं निम्न-मध्यम आर्थिक वर्ग की आबादी कितनी अधिक है।
कोरोना काल में लाखों भारतीयों ने सिर पर सामान रखकर, भूखे-प्यासे, पुलिस की लाठियां खाते हुए हजारों किलोमीटर पैदल यात्रा की थी। ऐसे लोगों के लिए प्रशांत किशोर, राहुल गांधी, कन्हैया कुमार या किसी अन्य नेता की पदयात्रा का क्या महत्व हो सकता है? उनके लिए पैदल चलना कोई आश्चर्य की बात नहीं, बल्कि जीवन का एक सामान्य हिस्सा है।
क्या पदयात्राएं केवल दिखावा बनकर रह गई हैं?
आज के समय में, आम जनता को इन पदयात्राओं से कोई विशेष रुचि नहीं है। उनके लिए यह किसी मनोरंजन का साधन भी नहीं बन पातीं। ये यात्राएं केवल ‘सेल्फी यात्राएं’ बनकर रह जाती हैं, जहां कुछ युवा पदयात्रा करने वाले नेताओं के साथ तस्वीरें खिंचवाते हैं और उन्हें सोशल मीडिया पर साझा करते हैं।
राजनीतिक दृष्टि से भी इन पदयात्राओं का एकमात्र उद्देश्य नेताओं की व्यक्तिगत छवि को चमकाना है ताकि अधिक से अधिक लोग उनके नाम और चेहरे को पहचानें और आगे चलकर चुनावों में उन्हें वोट दें। लेकिन हकीकत यह है कि इन यात्राओं से उन्हें वोटों का कोई सीधा लाभ नहीं मिलने वाला है, बल्कि समय की बर्बादी के कारण वे अन्य राजनीतिक गतिविधियों से होने वाले संभावित लाभ से भी चूक जाते हैं।
गांधी जी की पदयात्राओं और आधुनिक पदयात्राओं में अंतर
आजादी से पूर्व महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की पदयात्राएं या फिर नब्बे के दशक में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर (Former PM Chandrashekhar) द्वारा की गई पदयात्रा के समय परिस्थितियां अलग थीं। तब गांव-गांव तक पहुंचने के लिए सड़कें सीमित थीं, संसाधनों की कमी थी, और जनसंपर्क का कोई अन्य प्रभावी माध्यम नहीं था। इसलिए, पदयात्राएं संदेश पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम थीं।
लेकिन 21वीं सदी में जब संचार के अनेकों साधन उपलब्ध हैं—टीवी, सोशल मीडिया, रेडियो, इंटरनेट—तो इतनी लंबी पदयात्राओं का कोई व्यावहारिक औचित्य नहीं रह जाता। यदि किसी नेता को जनता से मिलना ही है, तो गाड़ियों या हेलीकॉप्टर से तेजी से अधिक स्थानों पर जाया जा सकता है। मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म का भी उपयोग किया जा सकता है, जिससे संदेश अधिक प्रभावी और व्यापक रूप से पहुंच सकता है।
क्या पदयात्राओं से कोई राजनीतिक लाभ संभव है?
आज की पदयात्राओं को महात्मा गांधी की यात्राओं के समान कहना गलत होगा। गांधी जी की यात्राओं का प्राथमिक उद्देश्य समाज का उत्थान था, जबकि आज की यात्राओं का मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करना है। इसलिए, इन आधुनिक पदयात्राओं से कोई ठोस राजनीतिक या सामाजिक परिणाम निकलने की संभावना नहीं है।
जो नए नेता पदयात्रा शुरू करने की योजना बना रहे हैं, उन्हें इक्कीसवीं सदी के पदयात्रा के जनक प्रशांत किशोर से एक बार जरूर पूछ लेना चाहिए कि उनकी पदयात्रा से उन्हें कोई लाभ हुआ या नुकसान?
हालांकि, राजनीति को समझने और सीखने के लिए पदयात्राएं उपयोगी हो सकती हैं। "असफलता ही सफलता की पहली सीढ़ी है"—इस सिद्धांत के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इन यात्राओं से कुछ-न-कुछ सीखने को अवश्य मिलेगा।
Tags:
Bihar