जदयू में नेताओं का अकाल, चाटुकारों की भरमार, इसलिए हो रही निशांत की मांग : धनंजय

पटना/बिहार (Patna/Bihar), 17 मार्च 2025, सोमवार
आलेख : धनंजय कुमार सिन्हा 
राजनैतिक विश्लेषक एवं संस्थापक, अमन समिति
पिछले कुछ महीनों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुत्र निशांत को राजनीति में उतारने की मांग की जा रही है। इसकी शुरुआत जदयू (JDU) के कुछ युवा कार्यकर्ताओं एवं पदाधिकारियों द्वारा जदयू कार्यालय के बाहर बैनर लगाकर की गई। संभवतः यह जदयू के ही कुछ वरिष्ठ नेताओं के इशारे पर किया गया होगा।

इसके बाद मीडिया में इस मुद्दे को उछाला गया। तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे। कुछ ने कहा कि मिलर हाई स्कूल में आयोजित होने वाली कुर्मी रैली से निशांत की राजनीति में एंट्री होगी, तो कुछ उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाए जाने की बात कर रहे हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन सभी अटकलों पर चुप्पी साधे हुए हैं।

राजनीति में एंट्री को लेकर निशांत की स्थिति
इस बीच निशांत कुछ बार मीडिया से रूबरू भी हुए, लेकिन उन्होंने राजनीति में प्रवेश को लेकर कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया।

मिलर हाई स्कूल में कुर्मी रैली संपन्न भी हो गई, लेकिन निशांत उसमें नहीं आए। उन्हें विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाए जाने की संभावना कितनी वास्तविक है, यह अभी भविष्य के गर्भ में है।

इस दौरान राजद (RJD), कांग्रेस (Congress) सहित कई अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं ने इस संभावना को उचित ठहराते हुए इसका पुरजोर समर्थन किया है।

क्या नीतीश कुमार अपने सिद्धांतों से समझौता करेंगे?
अब तक के राजनीतिक जीवन में नीतीश कुमार ने अपने परिवार के किसी भी सदस्य को राजनीति में नहीं आने दिया है। उन्होंने यह दिखाने और साबित करने का प्रयास किया है कि वे अपने सगे-संबंधियों को अपने राजनीतिक कद से लाभान्वित नहीं करते। उन्होंने अपने इस व्यवहार को अपने राजनीतिक व्यक्तित्व की एक बड़ी यूएसपी (USP) के रूप में प्रस्तुत किया है और इसमें अब तक सफल भी रहे हैं।

इसी प्रकार की कुछ यूएसपी के कारण पिछली विधानसभा चुनाव में जदयू तीसरे नंबर की पार्टी होने के बावजूद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने। मात्र 43 सीटें जीतकर भी वे अब पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले हैं।

जदयू में नेताओं का अभाव और चाटुकारों की भरमार
हालांकि, यह भी सत्य है कि जदयू को मात्र 43 सीटें मिलने के लिए सिर्फ चिराग पासवान (Chirag Paswan) ही जिम्मेदार नहीं थे, बल्कि जदयू में नेतृत्व क्षमता वाले नेताओं का अभाव भी एक प्रमुख कारण था।

लगभग एक दशक से जदयू में सिर्फ और सिर्फ एक ही नेता बचे हैं – नीतीश कुमार। बाकी सब केवल नाम मात्र के नेता हैं, जिनकी नेतागिरी केवल नीतीश कुमार की कृपा पर आधारित है। नेतृत्व क्षमता के नाम पर उनमें अब कुछ भी शेष नहीं है। यदि किसी में कभी नेतृत्व क्षमता रही भी होगी, तो उन्होंने उसे खत्म कर दिया ताकि सरकार और पार्टी में महत्वपूर्ण पदों पर बने रह सकें।

जदयू के कमजोर हुए हालात के लिए खुद नीतीश कुमार ही जिम्मेदार
पार्टी को इस स्थिति में लाने के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार स्वयं नीतीश कुमार हैं। जिसने भी उनसे अलग राय रखने की कोशिश की, उसे दरकिनार कर दिया गया। उनके इस रवैये के कारण जदयू में अब केवल चाटुकार नेता ही बचे हैं, या फिर वे लोग, जिन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता को दबाकर चाटुकारों की कतार में शामिल होना उचित समझा।

राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए ललन सिंह (Lalan Singh) का यह बयान कि वे केवल "कस्टोडियन" हैं, उपरोक्त सभी तथ्यों की पुष्टि करता है।

आगामी विधानसभा चुनाव और जदयू की रणनीति
आगामी विधानसभा चुनाव निकट हैं, और इस बार जदयू के सामने अपनी सीटें बढ़ाने की चुनौती है। लेकिन दूसरी ओर, जदयू में नेतृत्व क्षमता वाले नेताओं की भारी कमी है। नीतीश कुमार के अलावा पार्टी में केवल नाममात्र के नेता हैं, जो निशांत को राजनीति में लाने की वकालत कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि निशांत कुमार (Nishant Kumar) के आने से पार्टी में उनकी स्थिति यथावत बनी रह पाएगी या और भी मजबूत हो जाएगी।

अन्य दलों की रणनीति और निशांत को राजनीति में लाने का समर्थन
दूसरी ओर, राजद-कांग्रेस जैसी पार्टियां और मांझी-चिराग जैसे नेता निशांत के राजनीति में आने का पुरजोर समर्थन कर रहे हैं। इसका उनके लिए दोहरा लाभ है।

पहला, परिवारवाद वाली पार्टियों को यह संतोष मिलेगा कि अब राजनीति में बिना परिवारवाद के कोई नहीं बचा। अब तक इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) उनसे श्रेष्ठ दिखते थे, लेकिन यदि वे भी इस राह पर चलते हैं, तो परिवारवाद पूरी तरह से सामान्य राजनीतिक प्रक्रिया बन जाएगी और अन्य पार्टियों को इस पर शर्मिंदगी महसूस नहीं करनी पड़ेगी।

दूसरा, निशांत को राजनीति का कम अनुभव होने के कारण उनसे मुकाबला करना आसान रहेगा। वहीं जदयू के नेता भी इस अनुभवहीनता का लाभ उठाकर अपने-अपने प्रभाव को बरकरार बनाए रखने में सहजता देख पा रहे हैं।

नीतीश कुमार की हरी झंडी का इंतजार
इसलिए जदयू के वरिष्ठ नेता भी चुप्पी साधे हुए हैं। अगर नीतीश कुमार हरी झंडी देते हैं, तो अगले ही दिन से वे निशांत के गुणगान में लग जाएंगे, और यदि नीतीश कुमार इस विचार को खारिज कर देते हैं, तो वे फिर से नीतीश कुमार को परिवारवाद का एकमात्र अपवाद बताते नहीं थकेंगे। 

क्या युवा निशांत झेल पाएंगे इतना दबाव?
संपूर्ण स्थिति नीतीश कुमार के निर्णय पर निर्भर करती है। लेकिन इन सबके बीच यह भी महत्वपूर्ण है कि इस तरह की राजनीतिक बयानबाजियों और मीडिया चर्चाओं का युवा निशांत की मानसिकता पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

यदि उन्हें विधायक, मंत्री, उपमुख्यमंत्री, या जदयू का भविष्य बताया जाता रहा और वे इस आकर्षण में आ गए, लेकिन बाद में यदि नीतीश कुमार अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे, तो निशांत को गहरा मानसिक आघात लग सकता है।

इसलिए इस पूरी राजनीतिक उठापटक में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या निशांत इस दबाव को संभालने के लिए तैयार हैं, और क्या नीतीश कुमार अंततः अपनी अब तक की राजनीति से अलग कोई निर्णय लेंगे?
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