मोक्ष की नगरी काशी का रहस्यमयी स्थल — पिशाच मोचन कुंड : जहां भटकती आत्माओं को मिलता है मोक्ष और शांति

वाराणसी, 18 अप्रैल 2025, शुक्रवार : हिंदू धर्म की गूढ़ता और आध्यात्मिकता से ओतप्रोत काशी नगरी में एक ऐसा स्थान है, जहां न केवल जीवित लोगों को आध्यात्मिक संतोष की प्राप्ति होती है, बल्कि उन आत्माओं को भी मुक्ति मिलती है, जो असमय मृत्यु के कारण इस लोक और परलोक के बीच भटक रही होती हैं। इस स्थान का नाम है — पिशाच मोचन कुंड, जो कि काशी के रहस्यों और मान्यताओं में एक प्रमुख अध्याय के रूप में प्रतिष्ठित है।

शास्त्रों में अमर आत्मा का वर्णन और काशी का विशेष महत्व
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है — “नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः...” अर्थात आत्मा को कोई शस्त्र नहीं काट सकता, कोई अग्नि जला नहीं सकती। आत्मा अजर और अमर है। परंतु शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है, उसकी आत्मा अपने असमाप्त कर्मों और अपूर्ण इच्छाओं के कारण पृथ्वी पर भटकती रहती है। ऐसी आत्माओं को शांति और मुक्ति प्रदान करने का विशेष स्थान है — पिशाच मोचन कुंड, जो बाबा विश्वनाथ की नगरी में स्थित है और गरुड़ पुराण के काशी खंड में इसका उल्लेख स्पष्ट रूप से किया गया है।

आत्माओं के उधार चुकाने का स्थान
पिशाच मोचन कुंड केवल एक पवित्र जल स्रोत ही नहीं, बल्कि आत्मिक ऋण और पितृ ऋण से मुक्ति दिलाने का माध्यम भी माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि यहां पर पीपल के वृक्ष के नीचे सिक्का रखकर या बांधकर पूर्वजों के अधूरे कर्मों का ऋण उतारा जाता है। यह एक प्रतीकात्मक और अत्यंत प्रभावशाली क्रिया मानी जाती है, जो आत्मा को शांति की ओर ले जाती है।

त्रिपिंडी श्राद्ध: एक विशेष वैदिक क्रिया
काशी के प्रसिद्ध वैदिक विद्वान, पं. रत्नेश त्रिपाठी के अनुसार, यहां विशेष रूप से त्रिपिंडी श्राद्ध संपन्न कराया जाता है। इस अनुष्ठान में तीन पीढ़ियों — पितामह, पिता और स्वयं के लिए पिंडदान किया जाता है। इस पूजन में ब्रह्मा, विष्णु और महादेव की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा कर विशेष विधि से पूजन किया जाता है। मान्यता है कि असंतुष्ट पूर्वजों की आत्माएं संतोष न मिलने पर वंशजों के जीवन में बाधा बन सकती हैं, और इस श्राद्ध से उन्हें मुक्ति दी जाती है।

पिशाच मोचन कुंड की पौराणिक कथा
पं. त्रिपाठी के अनुसार, यह कुंड गंगा के धरती पर अवतरित होने से भी पूर्व अस्तित्व में था। इसकी उत्पत्ति की कथा भी अत्यंत रोचक है। शास्त्रों में वर्णित है कि एक पिशाच, जिसने अपने जीवन में अनेक पाप किए थे, इस कुंड में स्नान और तर्पण के माध्यम से मुक्त हुआ था। तभी से इस कुंड को पिशाच मोचन कहा जाने लगा — अर्थात वह स्थान जहां पिशाच रूपी आत्माओं का भी मोचन (मुक्ति) संभव है।

काशी का विमल तीर्थ और वैश्विक श्रद्धा का केंद्र
काशी निवासी और अनुभवी पुजारी, ज्ञानेश्वर पाण्डेय बताते हैं कि पिशाच मोचन कुंड को ‘काशी का विमल तीर्थ’ भी कहा जाता है। यह स्थान इतना प्राचीन और पवित्र माना गया है कि न केवल गरुड़ पुराण, बल्कि स्कंद पुराण और अन्य कई धार्मिक ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। विशेष रूप से पितृपक्ष के दौरान देश-विदेश से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजन, तर्पण और पिंडदान करते हैं।

अंतिम मुक्ति का द्वार: आत्माओं के लिए काशी का वरदान
अकाल मृत्यु, अधूरी इच्छाएं या प्रेत बाधा — इन सभी से ग्रसित आत्माओं के लिए पिशाच मोचन कुंड एक दिव्य स्थान के रूप में जाना जाता है। यहां की धार्मिक क्रियाएं आत्मा को न केवल संतोष प्रदान करती हैं, बल्कि उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति देकर मोक्ष की प्राप्ति तक पहुंचाती हैं। यही कारण है कि काशी को मोक्ष नगरी कहा जाता है, और यह कुंड उस संकल्प का केंद्र बिंदु है।

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