इस्लामाबाद/पाकिस्तान, 9 मई 2025 — भारत की ओर से गुरुवार को आतंकवाद के खिलाफ की गई सटीक और निर्णायक सैन्य कार्रवाई का असर अब पाकिस्तान की सत्ता के गलियारों तक पहुंच गया है। सीमा पर हो रहे घटनाक्रमों की गूंज अब पाकिस्तान की संसद में भी सुनाई देने लगी है, जहां प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में शुक्रवार को एक असाधारण दृश्य देखने को मिला जब सत्तारूढ़ दल के विरोधी सांसदों ने अपने ही प्रधानमंत्री को 'कायर' और 'निर्बल' करार दिया।
सांसद शाहिद अहमद खट्टक ने बेहद तीखे और कटाक्षपूर्ण अंदाज में प्रधानमंत्री शरीफ की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा, “जब हमारे पड़ोसी देश की ओर से आक्रामक कार्रवाई होती है, तब हमारा प्रधानमंत्री मौन साधे रहता है। वह एक शब्द भी नहीं बोलते, यहां तक कि मोदी का नाम लेने से भी कतराते हैं।”
खट्टक ने अपनी बात को ऐतिहासिक संदर्भों से जोड़ते हुए टीपू सुल्तान के प्रसिद्ध कथन का उल्लेख किया: “अगर एक लश्कर का सरदार शेर हो और उसके साथ गीदड़ हों, तो भी वह लश्कर शेरों की तरह लड़ता है। लेकिन यदि शेरों के लश्कर का सरदार गीदड़ हो, तो वह सेना कभी जीत नहीं सकती।” उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति भी कुछ ऐसी ही है, जहां सीमा पर लड़ने वाले सिपाही बहादुरी से खड़े हैं, लेकिन उन्हें नेतृत्व देने वाला व्यक्ति डर और संकोच में घिरा है।
उन्होंने गंभीर लहजे में कहा, “हमारे जवानों को क्या संदेश दिया जा रहा है? क्या हम अपने नेतृत्व पर गर्व कर सकते हैं, जब हमारा प्रधानमंत्री सार्वजनिक मंच पर दुश्मन का नाम तक नहीं ले सकता? यह वक्त है निर्णायक नेतृत्व का, न कि कायरता का।”
इस बहस के दौरान सदन में माहौल अत्यंत भावनात्मक हो गया, जब पाकिस्तान के पूर्व मेजर और वर्तमान सांसद ताहिर इकबाल ने अपने संबोधन में भावनाओं पर नियंत्रण खो दिया और आंखों से आंसू बहते हुए देश की हालत पर अफसोस जताया।
उन्होंने भर्राए स्वर में कहा, “हम अपनी कौम से कहते हैं कि सब मिलकर चलो और अपने रब से दुआ करो कि वह हमें बचाए। इस मुल्क को बचाए।” उन्होंने अल्लाह से माफी मांगते हुए कहा, “ऐ अल्लाह, तू हमें माफ कर दे। हम तुझसे रहमत की भीख मांगते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि हम तेरे गुनहगार हैं। हमें हिदायत दे और हमारे मुल्क की हिफाजत कर।”
यह घटनाक्रम पाकिस्तान की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति पर एक गहरा प्रश्नचिह्न लगा रहा है। जब देश बाहरी दबाव और आंतरिक भ्रम की स्थिति से गुजर रहा है, तब संसद के भीतर ऐसी भावनात्मक और आलोचनात्मक अभिव्यक्तियां यह संकेत देती हैं कि पाकिस्तान की शासन व्यवस्था में गहरी उथल-पुथल चल रही है।
इस्लामाबाद की राजनीतिक फिजा में इस वक्त बेचैनी है — और इसकी वजह न सिर्फ भारत की सैन्य कार्रवाई है, बल्कि अपने ही नेतृत्व पर उठते सवाल भी हैं।
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