पटना/बिहार (Patna/Bihar), 12 मई 2025 : चैत का महीना ग्रामीण भारत, खासकर बिहार के किसानों के लिए खुशियों की सौगात लेकर आता है। इसी समय अरहर और गेहूं की नई फसलें घरों में दस्तक देती हैं। रबी की फसलों की कटाई का यह महीना खेतों की गंध से लेकर रसोई तक एक खास व्यंजन की याद दिलाता है— दाल पीठी।
दाल पीठी एक पारंपरिक व्यंजन है जिसे अरहर की छिलके वाली दाल और गेहूं के नए आटे से बनाया जाता है। इसका स्वाद जितना अनोखा है, इसकी पौष्टिकता उतनी ही सराहनीय है। यह व्यंजन बिना किसी मसाले के तैयार किया जाता है, जिससे दाल की असली खुशबू और स्वाद बरकरार रहता है। नए गेहूं के आटे में प्राकृतिक मिठास होती है, वहीं अरहर की दाल में खास किस्म की ‘सोनहापन’—एक मिट्टी जैसी सोंधी खुशबू—मिलती है, जो इसे खास बनाती है।
बिहार में पीठी को आकर्षक आकारों में गढ़ा जाता है—चिड़िया, फूल, पत्ती आदि। ये कलात्मक पीठियाँ बच्चों को बहुत लुभाती हैं और उन्हें पौष्टिक भोजन की ओर आकर्षित करती हैं। इसीलिए दाल पीठी न सिर्फ स्वाद का, बल्कि संस्कृति और रचनात्मकता का भी प्रतीक है।
पुराने लोग बताते हैं कि हरित क्रांति के बाद गेहूं की पैदावार में जबरदस्त वृद्धि हुई। जब रोटी का चलन बहुत ज्यादा हो गया और लोग उससे ऊबने लगे, तब इस तरह के व्यंजनों ने जन्म लिया। हालांकि गेहूं का भात कभी लोकप्रिय नहीं हुआ, लेकिन दाल पीठी ने अपना विशेष स्थान बना लिया।
आज प्रेशर कुकर के ज़माने में इसे बनाना और भी आसान हो गया है। अगर आपने भी अपने बचपन में दाल पीठी का स्वाद चखा है, तो अपने अनुभव जरूर साझा करें—क्योंकि यह सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि हमारी मिट्टी की याद है।
Tags:
Bihar