शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद को क्यों नहीं करना चाहिए ग्रहण? जानें शिव पुराण से जुड़ा धार्मिक रहस्य

नई दिल्ली, 26 जून 2025। सावन मास की शुरुआत होते ही भोलेनाथ की पूजा-अर्चना का विशेष दौर शुरू हो जाता है। भक्त शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, फल व अन्य पूजन सामग्रियां अर्पित करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद क्यों नहीं खाया जाता? दरअसल, इसके पीछे धार्मिक और पौराणिक कारण हैं, जो शिव पुराण में विस्तार से बताए गए हैं।

शिव पुराण में है स्पष्ट निर्देश
शिव पुराण के एक श्लोक –
"लिंगस्योपरि दत्तं यत् नैवेद्यं भूतभावनम्।
तद् भुक्त्वा चण्डिकेशस्य गणस्य च भवेत् पदम्।"
का अर्थ है कि शिवलिंग पर अर्पित किया गया नैवेद्य (भोग) भगवान शिव के गण चण्डेश्वर को समर्पित होता है। इस भोग को यदि कोई ग्रहण करता है, तो वह चण्डेश्वर गण का पद प्राप्त करता है, जिसका तात्पर्य है कि वह व्यक्ति भूत-प्रेत प्रभाव में आ सकता है या उसे नकारात्मक ऊर्जा का सामना करना पड़ सकता है।

कौन हैं चण्डेश्वर?
पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव के मुख से उत्पन्न गणों में चण्डेश्वर का विशेष स्थान है। इन्हें भूत-प्रेतों और गणों का प्रधान माना गया है। इसी कारण शिवलिंग पर अर्पित प्रसाद चण्डेश्वर के हिस्से का माना जाता है। धार्मिक नियमों के अनुसार, यह प्रसाद मानवों के लिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि यह अलौकिक शक्तियों को समर्पित होता है।

किन शिवलिंगों पर चढ़े प्रसाद को खा सकते हैं?
हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में यह निषेध लागू नहीं होता।
धातु या पारद (पारा) से बने शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद ग्रहण किया जा सकता है, क्योंकि इन पर चण्डेश्वर का प्रभाव नहीं माना गया है।
इसके विपरीत, पत्थर, मिट्टी या चीनी मिट्टी से बने शिवलिंगों पर अर्पित प्रसाद को नहीं खाना चाहिए, क्योंकि उस पर चण्डेश्वर का अंश माना जाता है।
शिव मूर्ति पर चढ़ा प्रसाद होता है शुभ
यदि प्रसाद भगवान शिव की प्रतिमा या मूर्ति पर चढ़ाया गया है, तो उसे ग्रहण करना शुभ माना जाता है। ऐसे प्रसाद के सेवन से पापों का नाश होता है और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।

क्या करें शिवलिंग का प्रसाद?
धार्मिक परंपरा के अनुसार, शिवलिंग पर चढ़ा प्रसाद ग्रहण करने की बजाय उसे जलाशयों में प्रवाहित कर देना चाहिए या गौ माता व अन्य पशुओं को खिला देना चाहिए। ऐसा करना न केवल धर्मसम्मत है, बल्कि यह परंपरागत पूजा की शुद्धता भी बनाए रखता है।

शिवलिंग पर अर्पित भोग को ग्रहण न करने का मूल कारण यह है कि वह चण्डेश्वर गण को समर्पित होता है, न कि मनुष्यों को। इसलिए भक्तों को चाहिए कि वे पौराणिक नियमों का पालन करें और भोलेनाथ की पूजा पूरी श्रद्धा व विधि-विधान से करें।
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