नई दिल्ली, 30 जून 2025। भारतीय राजनीति में जब शोर-शराबा, बयानबाजी और सत्ता की होड़ आम हो गई है, तब मनोज सिन्हा जैसे नेता एक सुकून देने वाली मिसाल हैं। जमीन से जुड़ा व्यक्तित्व, सादगी से भरा जीवन और जनता के प्रति समर्पण—यही उनकी पहचान है। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से लेकर जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल पद तक उनकी यात्रा न सिर्फ प्रेरणादायी है, बल्कि बताती है कि सत्ता में रहकर भी विनम्र और लोककल्याणकारी बना जा सकता है।
🎂 1 जुलाई : जन्मदिन नहीं, एक राजनीतिक सोच का उत्सव
1 जुलाई को मनोज सिन्हा का जन्मदिन आता है। लेकिन यह दिन सिर्फ एक राजनेता का जन्मदिन नहीं, बल्कि उस राजनैतिक सोच की याद दिलाता है जो अब दुर्लभ होती जा रही है—विकास, विश्वास और सादगी की राजनीति।
📘 शैक्षणिक और राजनीतिक शुरुआत
1959 में यूपी के गाजीपुर जिले के मोहनपुरा गांव में जन्मे मनोज सिन्हा ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक और एमटेक किया। वर्ष 1982 में वे बीएचयू छात्रसंघ के अध्यक्ष बने और यहीं से उनकी राजनीतिक यात्रा की नींव पड़ी। संगठन की समझ, टीमवर्क और स्पष्ट सोच ने उन्हें शुरुआत से ही अलग पहचान दिलाई।
🗳️ संसद में शानदार पारी
1996 में पहली बार बीजेपी के टिकट पर गाजीपुर से लोकसभा पहुंचे। 1999 और 2014 में भी उन्होंने जीत दोहराई। हालांकि 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद, 13वीं लोकसभा में उन्हें भारत के सबसे ईमानदार सांसदों में शामिल किया गया। सांसद निधि का 100% उपयोग और जनता से सीधा संवाद, उनके कार्यकाल की विशेषता रही।
🚉 केंद्रीय मंत्री के रूप में प्रभावशाली कार्य
2014 में नरेंद्र मोदी सरकार में उन्हें रेल राज्य मंत्री बनाया गया। बाद में संचार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भी रहे। डिजिटल इंडिया के तहत उन्होंने टेलीकॉम क्षेत्र में पारदर्शिता और सुधारों की शुरुआत की। उनकी शैली रही—कम बोलना, ज़्यादा काम करना।
👑 मुख्यमंत्री पद का दावेदार, फिर भी शांत
2017 में यूपी के मुख्यमंत्री पद के लिए उनका नाम सबसे प्रबल दावेदारों में रहा, लेकिन फैसला कुछ और हुआ। उन्होंने न कोई विरोध किया, न कोई बयान। यह दिखाता है कि वे सत्ता के पीछे नहीं, सेवा के लिए राजनीति करते हैं।
🏞️ जम्मू-कश्मीर में बदलाव की कहानी
5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर के हालात बेहद संवेदनशील थे। अगस्त 2020 में उन्हें उपराज्यपाल बनाया गया। आतंकवाद के खिलाफ सख्ती, तेज विकास कार्य, युवाओं के लिए रोजगार और पर्यटन को बढ़ावा—उनके कार्यकाल की पहचान बने। उन्होंने जम्मू-कश्मीर को स्थिरता और विश्वास का नया चेहरा देने का प्रयास किया।
🤝 टकराव नहीं, समन्वय की राजनीति
जहां दिल्ली में एलजी और राज्य सरकार के बीच टकराव आम बात रही, वहीं जम्मू-कश्मीर में मनोज सिन्हा ने सर्वदलीय समन्वय का वातावरण कायम रखा। यहां तक कि उमर अब्दुल्ला की सरकार के साथ भी कोई बड़ा टकराव सामने नहीं आया।
🌿 सादगी और शुचिता की पहचान
धोती-कुर्ता या पाजामा में दिखने वाले मनोज सिन्हा की छवि आम लोगों के बीच आज भी एक सरल, लेकिन दृढ़ नेता की है। वे सत्ता के शोरगुल से दूर रहकर सेवा और संवेदनशील नेतृत्व का उदाहरण हैं।
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