Jamui: नहीं सुधरी बीड़ी श्रमिकों की हालत, न्यूनतम मजदूरी से वंचित, महिलाएँ उम्मीद लगाए बैठी

जमुई/बिहार। जमुई जिला के झाझा विधानसभा क्षेत्र में पिछले बीस वर्षों से सत्ता एनडीए के हाथ में रही है, लेकिन इलाके के बीड़ी श्रमिक आज भी अपने अधिकारों से वंचित हैं। सरकार द्वारा तय की गई 397 रुपये प्रति हजार बीड़ी की मजदूरी के बजाय श्रमिकों को सिर्फ 100 से 120 रुपये प्रति हजार बीड़ी मिलते हैं। इस शोषण के खिलाफ अब श्रमिकों में नाराजगी है और माना जा रहा है कि आने वाले चुनावों में बीड़ी श्रमिकों की भूमिका निर्णायक होगी।

क्षेत्र के अधिकांश परिवारों की आजीविका बीड़ी निर्माण पर टिकी है। खासकर महिलाएँ बड़ी संख्या में बीड़ी उद्योग से जुड़ी हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सरकार भले ही महिलाओं को लेकर संवेदनशील होने का दावा करती हो, लेकिन बीड़ी कामगार महिलाएँ खुद को योजनाओं और अधिकारों से वंचित महसूस कर रही हैं।

बीड़ी उत्पादन से सरकार को करोड़ों का राजस्व मिलता है। प्रतिदिन झाझा से ट्रक और ट्रेन के जरिए लाखों बीड़ी अन्य राज्यों में भेजी जाती है, बावजूद इसके बीड़ी श्रमिकों की हालत दयनीय है। हेलाजोत स्थित बीड़ी श्रमिक अस्पताल बदहाल है, डॉक्टर या तो उपलब्ध नहीं रहते या नियमित सेवाएँ नहीं देते। साथ ही, श्रमिक कार्ड तक उपलब्ध नहीं कराए गए हैं, जिसके कारण श्रमिक सरकार की योजनाओं से वंचित रह जाते हैं।

• श्रमिकों की पीड़ा
“हम लोगों को 100 से 120 रुपये प्रति हजार बीड़ी बनाने पर मिलते हैं। सरकार महिलाओं के प्रति सजग है, बावजूद इसके हम अधिकार से वंचित हैं।” – मधी देवी, श्रमिक

“इस महंगाई में 100 रुपये में कैसे गुजारा करें? कम से कम 200 रुपये से अधिक मजदूरी मिलनी चाहिए।” – बेबी देवी, श्रमिक

“वर्षों से बीड़ी श्रमिकों का शोषण हो रहा है। बीड़ी कार्ड नहीं बन रहा। अस्पताल का लाभ नहीं मिलता। हम सरकार की योजनाओं से वंचित रह जाते हैं।” – कुंती देवी, श्रमिक

बीड़ी श्रमिकों को लंबे समय तक बीड़ी बनाने से क्षय रोग (टीबी) जैसी गंभीर बीमारियाँ हो जाती हैं। सरकार ने ऐसे मरीजों के लिए झुमरीतिलैया में अस्पताल और मृत्यु पर अनुदान राशि की व्यवस्था की है, लेकिन कार्ड न होने के कारण जमुई क्षेत्र के श्रमिक इन सुविधाओं से लाभान्वित नहीं हो पा रहे।

• उद्योग संकट में, श्रमिक सबसे ज्यादा प्रभावित
बीड़ी तंबाकू एंड पत्ता व्यवसायी महासंघ के अध्यक्ष प्रफुलचंद त्रिवेदी का कहना है कि जमुई जिले में बीड़ी श्रमिकों की संख्या अधिक है, जबकि काम कम है। सरकार ने तंबाकू पर भारी टैक्स और जीएसटी लगाया है, जिससे उद्योग संकट में है। “सरकार की सोच बीड़ी उद्योग के प्रति गलत है। जमुई में बीड़ी निर्माण घर-घर का कुटीर उद्योग बन चुका है, लेकिन नियोजक श्रमिकों को कर्मचारी भविष्य निधि (पीएफ), बोनस और अन्य लाभ नहीं देते,” उन्होंने कहा।

दूसरे राज्यों में श्रमिकों को मजदूरी के साथ बोनस और अवकाश राशि मिलती है, जबकि बिहार में अधिकांश कंपनियाँ बिना लाइसेंस के काम करती हैं और श्रमिकों को पहचान पत्र तक उपलब्ध नहीं करातीं। इसका नतीजा यह है कि लाखों श्रमिक सरकारी योजनाओं और अधिकारों से वंचित रह जाते हैं।

जमुई, झाझा, गिद्धौर और लक्ष्मीपुर प्रखंड बीड़ी निर्माण के बड़े केंद्र हैं, जहाँ हजारों परिवार इस काम पर निर्भर हैं। लेकिन बीड़ी उद्योग में पारदर्शिता और सरकारी नियंत्रण के अभाव में श्रमिकों का लगातार शोषण हो रहा है। ऐसे में महिलाओं और श्रमिकों की उम्मीदें अब सरकार की ओर टिकी हैं कि क्या उन्हें न्यूनतम मजदूरी और बुनियादी सुविधाएँ मिल पाएंगी या फिर यह मुद्दा आने वाले चुनावों में बड़ा सवाल बनेगा।
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