नई दिल्ली, 15 नवंबर 2025, शनिवार : मां बनना एक महिला के जीवन का सबसे पवित्र, भावनात्मक और चुनौतीपूर्ण अनुभव है। प्रसव के दौरान जिस असहनीय पीड़ा से होकर एक महिला गुजरती है, उसकी तुलना किसी सामान्य दर्द से नहीं की जा सकती। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चे को जन्म देते समय मां को उतना दर्द होता है, जितना 200 हड्डियों के एक साथ टूटने पर होता है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति और आयुर्वेद में प्रसव को एक ऐसा क्षण माना गया है, जिसमें मां मानो पुनर्जन्म लेती है।
शिशु के जन्म के बाद मां केवल शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी संवेदनशील हो जाती है। हार्मोनल परिवर्तन, रक्तस्राव, स्तनपान की प्रक्रिया, थकान और पोषक तत्वों की कमी मिलकर मां के शरीर को कमजोर बना देते हैं। ऐसे में प्रसवोत्तर देखभाल किसी भी नवजात शिशु की देखभाल जितनी ही जरूरी हो जाती है।
आयुर्वेद में 45 दिन का ‘सूतिकाकाल’—मां के पुनर्निर्माण का समय
आयुर्वेद में प्रसव के बाद की अवधि को सूतिकाकाल कहा गया है। यह लगभग 45 दिनों का समय होता है, जिसमें मां को अधिक से अधिक आराम, पोषक भोजन और नियमित देखभाल की आवश्यकता होती है। आयुर्वेद इसे ‘पुनर्जन्म काल’ भी बताता है, क्योंकि इस दौरान मां के शरीर में व्यापक बदलाव आते हैं और नई ऊर्जा का संचार आवश्यक होता है।
प्रसवोत्तर देखभाल क्यों है जरूरी?
बच्चे को जन्म देने के बाद मां के शरीर में कैल्शियम, आयरन, प्रोटीन, विटामिन बी12
विटामिन डी, ओमेगा-3 फैटी एसिड की भारी कमी हो जाती है। यदि समय रहते यह कमी पूरी न हो, तो मां को कमर दर्द, हड्डियों की कमजोरी, थकान, बाल झड़ना, मानसिक तनाव और इम्यूनिटी कम होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
इसलिए प्रसवोत्तर अवधि में मां के आहार और देखभाल पर विशेष ध्यान देना अनिवार्य है।
आयरन की कमी दूर करना क्यों जरूरी?
डिलीवरी के दौरान मां के शरीर से काफी मात्रा में रक्त निकल जाता है, जिससे आयरन की कमी (एनीमिया) हो सकती है। इसे पूरा करने के लिए गुड़, चुकंदर, पालक, अनार का सेवन बेहद फायदेमंद है। आयुर्वेदिक रूप से पुनर्नवा मंडूर और लौह भस्म भी आयरन की कमी दूर करने में सहायक माने जाते हैं।
कैल्शियम—हड्डियों की मजबूती के लिए बेहद जरूरी
स्तनपान कराने के दौरान मां के शरीर से कैल्शियम की मात्रा तेजी से कम होती है।
कैल्शियम की पूर्ति के लिए दूध, छैना, मूंगफली, तिल उत्तम विकल्प हैं। इसके साथ शंख भस्म और अश्वगंधा लेह्य का सेवन हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद करता है।
विटामिन बी-12 की कमी से होती है अत्यधिक थकान
प्रसव के बाद थकान और कमजोरी बी-12 की कमी का संकेत हो सकता है। इसके लिए अंडे, दूध, दही का सेवन किया जा सकता है। आयुर्वेद में त्रिफला घृत को प्रसवोत्तर शरीर की मरम्मत के लिए विशेष रूप से लाभकारी माना गया है।
प्रोटीन और ओमेगा-3 फैटी एसिड—मांसपेशियों की मरम्मत और ऊर्जा पुनः प्राप्त करने के लिए आवश्यक
प्रसव के बाद कमजोर हुई मांसपेशियों को पुनः मजबूत बनाने के लिए प्रोटीन महत्वपूर्ण है। मूंग दाल, दूध, अंडे बेहतरीन प्रोटीन स्रोत हैं। ओमेगा-3 प्राप्त करने के लिए घी, बादाम, मूंग दाल फायदेमंद हैं।
तेल मालिश, आराम और मानसिक स्वास्थ्य—देखभाल का अभिन्न हिस्सा
प्रसव के बाद मां को नियमित तेल मालिश दी जानी चाहिए, जिससे रक्त संचार बढ़ता है, दर्द में राहत मिलती है, मानसिक तनाव कम होता है, साथ ही पर्याप्त नींद और स्ट्रेस-फ्री वातावरण भी बहुत जरूरी है।
प्रसव एक शारीरिक प्रक्रिया ही नहीं, बल्कि भावनात्मक और मानसिक रूप से भी अत्यंत संवेदनशील समय है। शिशु की तरह मां को भी उतनी ही देखभाल और पोषण की आवश्यकता होती है। यदि 45 दिन के सूतिकाकाल में उचित देखभाल की जाए, तो मां जल्द ही स्वस्थ होकर नए जीवन में सामंजस्य स्थापित कर पाती है।
Tags:
New Delhi

