पटना/बेगूसराय/मुजफ्फरपुर/बिहार। बिहार में सरकारी दफ्तरों में काम कराने के नाम पर चल रहे कथित “कमीशन सिस्टम” पर एक बार फिर निगरानी अन्वेषण ब्यूरो की सख्त कार्रवाई सामने आई है। बेगूसराय और मुजफ्फरपुर जिले में अलग–अलग मामलों में दो सरकारी कर्मियों को रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ गिरफ्तार किया गया है। इन घटनाओं ने यह साफ कर दिया है कि योजनाओं के बिल भुगतान हों या जमीन से जुड़े मामलों का निपटारा, कई कार्यालयों में नियम-कानून से ज्यादा ‘फाइल आगे बढ़ाने की कीमत’ तय हो चुकी है।
बेगूसराय जिले के विकास भवन में निगरानी की टीम ने बड़ी कार्रवाई करते हुए जिला कल्याण पदाधिकारी मनोज कुमार अग्रवाल और उनके कार्यालय के नाजिर जैनेन्द्र सिंह को रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया। आरोप है कि 18 हजार रुपये के एक बिल के भुगतान के एवज में दोनों ने 10 प्रतिशत कमीशन की मांग की थी। इस मामले में शिकायतकर्ता मुकेश राम ने 10 दिसंबर को निगरानी ब्यूरो में लिखित शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत मिलने के बाद निगरानी की टीम ने पूरे मामले का सत्यापन कराया, जिसमें आरोप सही पाए गए। इसके बाद जाल बिछाकर जैसे ही रिश्वत की राशि ली गई, टीम ने दोनों आरोपियों को रंगेहाथ दबोच लिया।
वहीं, मुजफ्फरपुर जिले के मोतीपुर अंचल कार्यालय में भी इसी तरह का मामला सामने आया, जहां जमीन से जुड़ी फाइल को रोक सूची से हटाने के नाम पर रिश्वत की मांग की गई। यहां अंचल कार्यालय के नाजिर श्यामचंद्र किशोर पर आरोप है कि उन्होंने शिकायतकर्ता राहुल रंजन से पहले 10 हजार रुपये की मांग की, बाद में 8 हजार रुपये में सौदा तय किया गया। तय दिन पर जैसे ही शिकायतकर्ता ने रिश्वत की राशि सौंपी, पहले से तैनात निगरानी की टीम ने तत्काल कार्रवाई करते हुए नाजिर को रंगेहाथ गिरफ्तार कर लिया। खास बात यह रही कि इस कार्रवाई के समय अंचलाधिकारी भी कार्यालय में मौजूद थे।
इन दोनों मामलों ने सरकारी कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार की गंभीर तस्वीर सामने रख दी है। बताया जा रहा है कि मोतीपुर अंचल कार्यालय में पिछले चार वर्षों के भीतर यह तीसरी निगरानी कार्रवाई है, जो वहां की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा करती है। निगरानी ब्यूरो की इन कार्रवाइयों से जहां एक ओर भ्रष्ट अधिकारियों में हड़कंप मचा है, वहीं दूसरी ओर आम जनता के बीच यह बहस तेज हो गई है कि आखिर अपने ही वैध काम के लिए लोगों को कब तक रिश्वत देने को मजबूर होना पड़ेगा।
निगरानी की इस कार्रवाई को प्रशासनिक सख्ती की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया है कि भ्रष्टाचार की जड़ें अभी गहरी हैं। अब देखना यह होगा कि इन मामलों के बाद सरकार और प्रशासन व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए कितनी ठोस पहल करता है, ताकि आम नागरिक बिना ‘कमीशन’ दिए अपने अधिकारों से जुड़े काम करा सकें।
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