बिहार कृषि विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय सम्मेलन शुरू, बागवानी विकास के ज़रिए ग्रामीण आजीविका सुधार पर मंथन

भागलपुर/बिहार, 28 मई। बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में बुधवार से ‘अमृतकाल में आजीविका सुधार हेतु बागवानी के तीव्र विकास’ विषय पर चार दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ हुआ। यह सम्मेलन 28 से 31 मई 2025 तक आयोजित किया जा रहा है, जिसमें देशभर से आए वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं की उपस्थिति दर्ज हो रही है।

इस बहुचर्चित सम्मेलन का उद्देश्य भारत में बागवानी क्षेत्र को नई गति देना और ग्रामीण आजीविका को सशक्त बनाने के लिए टिकाऊ रणनीतियों का खाका तैयार करना है।

मुख्य अतिथि डॉ. संजय कुमार ने बागवानी को बताया राष्ट्र निर्माण का अहम आधार

उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि डॉ. संजय कुमार ने कहा,

> “बागवानी प्रति इकाई क्षेत्रफल पर सबसे अधिक लाभकारी कृषि क्षेत्र है। किसान अब पारंपरिक खाद्यान्न फसलों से हटकर उच्च मूल्य वाली बागवानी फसलों की ओर अग्रसर हो रहे हैं, जो एक स्वागतयोग्य बदलाव है।”


उन्होंने बागवानी उत्पादों की ब्रांडिंग, मार्केटिंग और जीआई टैग आधारित खुदरा स्टोर्स की स्थापना का सुझाव दिया। साथ ही, कुपोषण की चुनौती के समाधान में विविधीकृत बागवानी उपायों की महत्ता भी रेखांकित की।

‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य की ओर बागवानी से अग्रसर देश

सम्मेलन में मौजूद डॉ. एच. पी. सिंह ने ‘विकसित भारत’ पहल की सफलता के लिए सामूहिक प्रयासों और तकनीकी नवाचारों की आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा कि कम संसाधनों में अधिक उत्पादन देने वाली तकनीकों को अपनाकर ही यह लक्ष्य संभव है।

डॉ. आलोक के. सिक्का ने आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के संतुलन पर बल देते हुए कहा,

> “बागवानी भारत की कृषि जीडीपी में बड़ा योगदान दे रही है और यह क्षेत्र 2047 तक विकसित भारत की संकल्पना में अहम भूमिका निभा सकता है।”


मखाना, लीची जैसे क्षेत्रीय उत्पादों पर शोध बढ़ाने की जरूरत

डॉ. एस. एन. झा ने मखाना और लीची जैसी क्षेत्रीय विशेषता वाली फसलों पर केंद्रित अनुसंधान की आवश्यकता बताई और प्रभावी प्रजनन तकनीकों को बढ़ावा देने की सिफारिश की।

वहीं, डॉ. ए. आर. पाठक ने ‘एएसएम फाउंडेशन’ के देशभक्ति भाव और योगदान की सराहना की। कई वैज्ञानिकों को बागवानी क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित भी किया गया।

प्रकाशन विमोचन और विश्वविद्यालय की उपलब्धियों की प्रस्तुति

कार्यक्रम की आयोजन सचिव डॉ. फिज़ा अहमद ने विश्वविद्यालय की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि संस्थान ने अब तक 19 पेटेंट, 1 ट्रेडमार्क, 56 किसान किस्मों का पंजीकरण कराया है, साथ ही जीआई डाक टिकटों का भी प्रकाशन हुआ है।

सम्मेलन के दौरान महत्वपूर्ण शोध पत्रिकाओं एवं तकनीकी प्रकाशनों का विमोचन किया गया।

कुलपति डॉ. डी. आर. सिंह के नेतृत्व की सराहना

समारोह में मौजूद सभी अतिथियों ने बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी. आर. सिंह के दूरदर्शी नेतृत्व और संस्थान को शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार की नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की।

बागवानी नवाचारों के ज़रिए ग्रामीण भारत की आजीविका सुधार के संकल्प के साथ यह सम्मेलन आगे बढ़ रहा है और इसके जरिए भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक ठोस कदम रखा गया है।
और नया पुराने