भारत-पाक संघर्ष और US की 'बिन बुलाए मेहमान' वाली भूमिका: क्यों 'चौधरी' बनने पर तुला है अमेरिका?

नई दिल्ली, 13 मई 2025 : एक पुरानी कहावत है—“मान न मान, मैं तेरा मेहमान”, और हाल के भारत-पाकिस्तान तनाव और सीमित संघर्ष विराम के संदर्भ में अमेरिका की भूमिका कुछ इसी कहावत पर खरी उतरती दिखती है। दोनों देशों ने आपसी बातचीत और शर्तों पर सीमित सीजफायर की घोषणा की है, लेकिन अमेरिका ने जैसे खुद को इस पूरी प्रक्रिया का सूत्रधार मान लिया हो। उसने दावा किया कि उसके प्रयासों से ही यह तनाव कम हो पाया और परमाणु युद्ध को टालने में वह ‘मुख्य भूमिका’ निभा रहा है।

सीजफायर पर अमेरिका का ‘स्वघोषित’ योगदान
पाकिस्तान की ओर से यह स्वीकार किया गया कि उसने अमेरिका से हस्तक्षेप की मांग की थी। मगर भारत की ओर से इस संबंध में न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने और न ही विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी मध्यस्थता की किसी भूमिका को स्वीकार किया है। इसके बावजूद अमेरिका, खासकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, बार-बार यह दावा कर रहे हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच गंभीर तनाव को समाप्त कराने में अहम भूमिका निभाई।

दरअसल, अमेरिका की यह 'चौधरी' बनने की कोशिश कहीं न कहीं उसकी वैश्विक प्रतिष्ठा में आई गिरावट को फिर से चमकाने की एक कोशिश भी है। आज जब रूस-यूक्रेन और इजरायल-गाजा जैसे गंभीर अंतरराष्ट्रीय संकटों में अमेरिका की मध्यस्थता की कोई खास पूछ नहीं रही, तो भारत-पाकिस्तान जैसे संवेदनशील मसले पर अपनी मौजूदगी जताकर वह अपनी प्रभावशीलता का भ्रम बनाए रखना चाहता है।

भारत की स्थिति स्पष्ट: किसी मध्यस्थता की कोई आवश्यकता नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में स्पष्ट रूप से दो टूक कह दिया कि भारत की पाकिस्तान से बातचीत केवल दो मुद्दों पर हो सकती है—आतंकवाद के समूल नाश और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) की वापसी। किसी भी बाहरी देश या संस्था की मध्यस्थता को भारत ने पूरी तरह खारिज किया है। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कहा कि डीजीएमओ स्तर पर दोनों देशों की आपसी बातचीत के बाद ही सीजफायर की घोषणा हुई, जिसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी।

अमेरिका की रणनीति: पाकिस्तान को साधना और ‘छवि निर्माण’
अमेरिका के रवैये के पीछे उसकी भू-राजनीतिक रणनीति भी छुपी हुई है। वह लंबे समय से पाकिस्तान के सैन्य अड्डों, एयरबेस और परमाणु हथियारों पर नजर बनाए हुए है। अफगानिस्तान से वापसी के बाद अमेरिका की नजर अब फिर से दक्षिण एशिया में सैन्य उपस्थिति बढ़ाने पर है। लेकिन पाकिस्तान चीन, तुर्की, और खाड़ी देशों की ओर झुका रहा, जिससे अमेरिका को सीधी पहुंच नहीं मिल पाई।

अब जब पाकिस्तान भारत के आक्रामक जवाब से घबराया हुआ है और अंतरराष्ट्रीय मदद की तलाश में है, अमेरिका इसे अपने हितों को साधने का एक मौका मान रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने सीजफायर की रात ही अमेरिका समेत चीन, कतर और तुर्की को धन्यवाद कहा था—एक तरह से यह संकेत था कि सीजफायर की अंतरराष्ट्रीय सहमति के पीछे पाकिस्तान की भारी कूटनीतिक मशक्कत थी, जबकि भारत ने इस प्रक्रिया को पूरी तरह से दोपक्षीय रखा।

डोनाल्ड ट्रंप के ‘कहानीकार’ दावे और वैश्विक प्रतिक्रिया
ट्रंप ने दावा किया, “हमने एक संभावित परमाणु युद्ध को रोका।” उन्होंने खुद को इस तनाव के समाधानकर्ता के तौर पर प्रस्तुत करते हुए कहा कि अगर अमेरिका ने दखल न दिया होता तो लाखों लोग मारे जा सकते थे। लेकिन यह दावा न भारत ने स्वीकारा, न ही किसी निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय संस्था ने इसकी पुष्टि की। भारत की चुप्पी और निषेध ने इस बात को और मजबूत किया कि अमेरिका का यह दावा राजनीतिक और आत्मप्रचार की सीमा से बाहर नहीं निकलता।

भारत का स्पष्ट संदेश: आंतरिक संप्रभुता से कोई समझौता नहीं
भारत ने अमेरिका सहित सभी वैश्विक शक्तियों को यह संदेश साफ-साफ दे दिया है कि उसके कूटनीतिक और सैन्य फैसले स्वतंत्र और स्वाभिमानी तरीके से लिए जाते हैं। वह किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करता, खासकर जब मामला राष्ट्रीय सुरक्षा, सीमाओं की रक्षा और आतंकवाद से जुड़ा हो।

अमेरिका की भूमिका - भ्रम और प्रचार
अमेरिका की यह कोशिश कि वह भारत-पाक संबंधों में निर्णायक भूमिका निभा रहा है, एक प्रकार की कूटनीतिक हकीकत से दूर कल्पना है। पाकिस्तान की कमजोर स्थिति और अमेरिका की भू-राजनीतिक भूख ने इस स्थिति को जन्म दिया है। भारत की ओर से बार-बार दी गई स्पष्टता, अमेरिका की इस कोशिश पर पानी फेरती है।

ट्रंप के बयानों और अमेरिका की 'चौधरीगिरी' को दुनिया अब उसी नज़र से देख रही है, जैसे कोई बिन बुलाया मेहमान खुद को जरूरी साबित करने की कोशिश करता है—न आमंत्रण है, न ज़रूरत, फिर भी 'मैं ही सब कुछ हूं' की ज़िद। भारत की मजबूती और पाकिस्तान की घबराहट के इस संघर्ष में अमेरिका की भूमिका नायक की नहीं, एक दर्शक से अधिक कुछ नहीं रही।
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