कलयुग में राहु-केतु और शनि के प्रभाव से बचना है तो इन प्राचीन मंदिरों के करें दर्शन

नई दिल्ली, 17 जून 2025 : भारतीय ज्योतिष में राहु और केतु को अदृश्य छाया ग्रह कहा गया है, लेकिन राहु को विशेष रूप से कलियुग का अधिपति माना जाता है। इसका कारण है—इस युग में बढ़ती इच्छाएँ, मोह, छल, भ्रम और भौतिक सुख की लालसा, जो राहु के ही प्रमुख लक्षण हैं। कुंडली में राहु-केतु की स्थिति यदि शुभ हो, तो व्यक्ति को अप्रत्याशित सफलता और राजयोग जैसी सुविधाएँ मिलती हैं। परंतु अगर राहु अशुभ अवस्था में हो, तो वह जीवन में भ्रम, भय, अपयश, स्वास्थ्य समस्याएँ, धन हानि और पारिवारिक क्लेश जैसे संकट उत्पन्न कर देता है।

ऐसे में राहु और केतु के दुष्प्रभावों से मुक्ति के लिए विशिष्ट पूजा और तीर्थस्थलों की यात्रा अत्यंत लाभकारी मानी गई है। आइए जानते हैं भारत के उन प्रमुख मंदिरों के बारे में, जहां दर्शन मात्र से राहु-केतु और शनि की कृपा प्राप्त की जा सकती है—
🌑 उत्तराखंड का रहस्यमय राहु मंदिर – पैठाणी गांव, पौड़ी गढ़वाल

यह भारत का इकलौता मंदिर है जो राहु देव को समर्पित है। थलीसैंड ब्लॉक के पैठाणी गांव में स्थित यह मंदिर इन्द्रेश्वर महादेव के नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि भगवान इंद्र ने अपने खोए हुए स्वर्ग को पाने के लिए यहां कठोर तपस्या की थी। यह मंदिर नयार की दो शाखाओं – उर्मिका और नवालिका (पश्चिमी नयार) के संगम पर बसा हुआ है, जो इसे अत्यंत पावन बनाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने राहु (राक्षस स्वरभानु) का सिर काटा था, तब उसका सिर यहीं गिरा था। आज भी यह स्थान "राहु शिला" के नाम से जाना जाता है, जो मंदिर से 50 मीटर दूर स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि अगर इस स्थान पर राहु पूजा बाधित हो जाए, तो भगवान शिव स्वयं अप्रसन्न हो जाते हैं।
🐍 थिरुनागेश्वरम राहु मंदिर – कुंभकोणम, तमिलनाडु

तमिलनाडु के कुंभकोणम नगर के निकट थिरुनागेश्वरम में स्थित यह भव्य मंदिर राहु देव की पूजा का प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर भगवान शिव के नागनाथ स्वरूप को समर्पित है, जहां देवी पार्वती को "पीरसूदी अम्मन" कहा जाता है।

चोल काल में निर्मित यह मंदिर नवग्रह स्थलों में से एक है और इसकी वास्तुकला अत्यंत भव्य है। यहां एक विशेष मान्यता है कि पूजा के दौरान राहु की मूर्ति पर दूध चढ़ाने से उसका रंग काला हो जाता है—जो यह दर्शाता है कि राहु देव पूजा स्वीकार कर रहे हैं।
🔱 श्रीकालहस्ती मंदिर – चित्तूर, आंध्र प्रदेश

यह मंदिर राहु और केतु दोनों की संयुक्त पूजा का केंद्र है। स्वर्णमुखी नदी के तट पर स्थित यह मंदिर वायु तत्व लिंग का प्रतिनिधित्व करता है—दक्षिण भारत में पंचतत्वों से जुड़े पाँच शिवलिंगों में से एक।

यहाँ की विशेष बात यह है कि पुजारी शिवलिंग को स्पर्श नहीं करते। केवल स्वर्ण पट्ट पर ही पूजन-सामग्री अर्पित की जाती है। यह भी माना जाता है कि अर्जुन ने अपने तप से यहाँ कालहस्तीश्वर के दर्शन किए थे। राहु-केतु दोष की शांति के लिए यहाँ विशेष पूजन किया जाता है, जिससे जातक जीवन के जटिल ग्रहदोषों से मुक्त हो सकता है।
🌌 राहु-केतु दोष से मुक्ति का दिव्य मार्ग

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, राहु की शांति के लिए मां सरस्वती की पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। साथ ही भगवान शिव, श्री हनुमान, श्री गणेश और भगवान विष्णु की आराधना भी राहु के प्रभाव को संतुलित करती है। विशेषकर महाशिवरात्रि, अमावस्या और राहु काल में किया गया पूजन अत्यधिक फलदायक होता है।

इन विशेष तीर्थस्थलों की यात्रा न केवल राहु-केतु और शनि के प्रभाव को कम करती है, बल्कि व्यक्ति को आध्यात्मिक बल, मानसिक शांति और सांसारिक संतुलन भी प्रदान करती है।

कलियुग में यदि ग्रहों का प्रकोप जीवन में कष्ट पैदा कर रहा है, तो ज्योतिषीय उपायों के साथ इन पवित्र मंदिरों की यात्रा अवश्य करें। यह न केवल ग्रहों के अशुभ प्रभाव को कम करता है, बल्कि आस्था, श्रद्धा और आत्मविश्वास भी लौटाता है।

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