जमुई/बिहार। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण सुझाव देते हुए पर्यावरण भारती के संस्थापक और पर्यावरणविद् राम बिलास शाण्डिल्य ने कहा है कि जल स्रोतों को स्वच्छ और बैक्टीरिया रहित रखने के लिए जामून वृक्ष की लकड़ी का उपयोग अत्यंत लाभकारी है। उन्होंने विश्व के सभी लोगों से अपील की है कि वे अपने घरों की पानी टंकियों में जामून पेड़ की लकड़ी डालें, ताकि जल शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक बना रहे।
शाण्डिल्य ने बताया कि जामून का फल न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि पाचन तंत्र के लिए भी अत्यंत लाभकारी है। खासकर वर्षा ऋतु में जामून का सेवन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत फायदेमंद है। भारत में प्राचीन काल से जामून फल खाने की परंपरा रही है, जिसे पशु-पक्षी भी अपने आहार में शामिल कर पाचन क्रिया को दुरुस्त रखते हैं।
आयुर्वेद में भी जामून को औषधीय फल माना गया है। मधुमेह (डायबिटीज) रोगियों के लिए यह अत्यंत लाभकारी है। शाण्डिल्य ने बताया कि जामून की गुठली सुखाकर उसका चूर्ण बनाकर सेवन करने से मधुमेह नियंत्रित रहता है। इसके अलावा, जामून वृक्ष की टहनी से दातुन करने से दांत मजबूत और स्वस्थ रहते हैं।
उन्होंने बताया कि प्राचीन भारतीय जल संरक्षण विधियों में भी जामून की लकड़ी का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। पुराने समय में जब कुओं की खुदाई की जाती थी, तो सबसे नीचे जामून वृक्ष की लकड़ी डाली जाती थी, जिसे स्थानीय भाषा में 'जमौठ' कहा जाता है। इसी प्रकार तालाबों की खुदाई के दौरान भी बीचों-बीच जामून की लकड़ी रखी जाती थी। यहाँ तक कि नावों के निर्माण में भी जल को स्वच्छ बनाए रखने के लिए नाव के निचले हिस्से में जामून की लकड़ी का उपयोग किया जाता था।
पर्यावरणविद् शाण्डिल्य का कहना है कि आधुनिक विज्ञान की तरक्की के बावजूद जामून वृक्ष की लकड़ी आज भी जल शुद्धि का प्राकृतिक और कारगर माध्यम है। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रत्येक व्यक्ति अपने घर की पानी टंकी में एक से दो फीट लंबी जामून वृक्ष की लकड़ी डाल दे, जिससे जल स्वच्छ, शुद्ध और बैक्टीरिया रहित बना रहेगा। खास बात यह है कि जामून की लकड़ी पानी में कभी सड़ती नहीं है, जिससे यह दीर्घकाल तक उपयोगी बनी रहती है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि जल संरक्षण एवं स्वच्छ जल प्राप्ति के लिए इस पारंपरिक भारतीय पद्धति को पुनः अपनाना समय की आवश्यकता है।
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