सारण/बिहार। प्रदेश की राजनीति में परिवारवाद कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार बनियापुर विधानसभा क्षेत्र में एक नई पीढ़ी के नेतृत्व की चर्चाएं जोरों पर हैं। लगातार जीत का रिकॉर्ड रखने वाले बनियापुर के पूर्व राजद विधायक और अब जदयू नेता केदारनाथ सिंह इस बार चुनाव मैदान से दूर हो सकते हैं। क्षेत्र में अब अटकलें तेज हैं कि उनके पुत्र और पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता ऋतुराज सिंह यहां से चुनाव लड़ सकते हैं।
ऋतुराज सिंह, जो हाल ही में जदयू में शामिल हुए हैं, पिछले दो विधानसभा चुनावों से बनियापुर में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। पिता की अनुपस्थिति में उन्होंने न सिर्फ लोगों के सुख-दुख में भागीदारी निभाई, बल्कि जन समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए उन्हें अपने डायरी में भी दर्ज किया। लोगों का कहना है कि उनकी पहल पर बाढ़ से तबाह क्षेत्र में तीन महीनों के अंदर सड़क और बिजली की स्थिति में तेजी से सुधार हुआ।
प्रभुनाथ सिंह परिवार का अब भी कायम है असर
बनियापुर की राजनीति में प्रभुनाथ सिंह परिवार का प्रभाव अब भी गहरा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में यहां भाजपा को बड़ी लीड मिली थी, जिसे क्षेत्रीय विश्लेषक प्रभुनाथ सिंह परिवार की पकड़ से जोड़कर देख रहे हैं। हालांकि, इस बार मुकाबला बहुस्तरीय होने जा रहा है।
भाजपा, कांग्रेस और जन सुराज में दावेदारों की भीड़
बनियापुर सीट पर इंडिया गठबंधन और एनडीए के बीच कड़ा मुकाबला तय माना जा रहा है। भाजपा से आनंद शंकर, जो पुराने कैडर और भूमिहार समुदाय से आते हैं, प्रमुख दावेदार हैं। वहीं, वीरेंद्र ओझा भी फिलहाल एनडीए में हैं लेकिन कांग्रेस और राजद में भी संभावनाएं तलाश रहे हैं।
कांग्रेस इस सीट को अपने खाते में लेने की तैयारी में है। पूर्व विधायक तारकेश्वर सिंह कांग्रेस में लगभग शामिल हो चुके हैं और चर्चा है कि पार्टी यहां से उन्हें या उनकी पत्नी को टिकट दे सकती है। जन सुराज की तरफ से जय बिहार फाउंडेशन के संजय सिंह और पूर्व जिला परिषद सदस्य पुष्पा सिंह भी सक्रिय हैं।
राजद के लिए मुश्किल विकल्प
राजद के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यहां का जातीय समीकरण उन्हें राजपूत या भूमिहार समुदाय के उम्मीदवार को प्राथमिकता देने के लिए मजबूर कर रहा है। हालांकि, सूत्रों के अनुसार यह सीट इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस के खाते में जाने की संभावना ज्यादा है।
अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या केदारनाथ सिंह अपने बेटे ऋतुराज सिंह को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपते हैं या बनियापुर का सियासी गणित किसी और दिशा में करवट लेता है।
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