वाराणसी/उत्तर प्रदेश, 10 जुलाई 2025। सावन मास का आरंभ 11 जुलाई से हो रहा है और उसके साथ ही काशी नगरी शिवमय होने लगी है। भगवान शिव की नगरी में स्थित मार्कण्डेय महादेव मंदिर विशेष आस्था का केंद्र है। यहां की मान्यता इतनी अद्भुत है कि इसे “जहां यमराज भी हार गए” कहा जाता है। गंगा और गोमती के संगम पर बसा यह मंदिर न केवल शिवभक्तों के लिए श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि अमरता के वरदान से जुड़ी महान कथा का भी प्रतीक है।
मंदिर की पौराणिक महिमा
मान्यता है कि महर्षि मृकण्ड के पुत्र मार्कण्डेय ऋषि को जन्म से ही अल्पायु प्राप्त थी – केवल 14 वर्ष। जब वे आयु की अंतिम सीमा पर पहुंचे और यमराज उनके प्राण हरने आए, तभी मार्कण्डेय भगवान शिव की आराधना में लीन थे। भक्त की रक्षा के लिए भोलेनाथ स्वयं प्रकट हुए और यमराज को रोका।
शिव ने आदेश दिया,
"मेरा भक्त सदा अमर रहेगा और उसकी पूजा मुझसे पहले की जाएगी।"
यहीं से इस पावन स्थान का नाम पड़ा – मार्कण्डेय महादेव मंदिर।
सावन में लगती है भक्तों की भीड़
सावन माह में यह मंदिर श्रद्धालुओं से खचाखच भर जाता है। कैथी गांव के पास स्थित इस मंदिर में श्रावण के पहले सोमवार से ही मेला आरंभ हो जाता है। भक्तजन जलाभिषेक, रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप और सत्यनारायण कथा जैसे पूजन कर्मों में शामिल होते हैं। खासकर श्रावण त्रयोदशी पर महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और संतान की रक्षा के लिए व्रत करती हैं।
बेलपत्र पर श्रीराम का नाम, यम के भय से मुक्ति
एक विशेष परंपरा यह है कि भक्त बेलपत्र पर भगवान राम का नाम लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। मान्यता है कि इससे संतान की दीर्घायु होती है और यमराज के भय से रक्षा मिलती है।
पर्यटन विभाग भी करता है मान्यता का उल्लेख
उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग की वेबसाइट पर भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। विभाग के अनुसार, यह मंदिर “भगवान शिव की असीम कृपा का प्रतीक” है और इसकी महिमा काल से परे है। सावन में कांवड़ियों की भारी भीड़ यहां उमड़ती है, जिससे पूरी काशी शिवमय हो उठती है।
तो इस सावन, यदि आप भी शिव के उस स्वरूप के दर्शन करना चाहते हैं, जिन्होंने यमराज को भी परास्त किया था, तो जरूर जाएं मार्कण्डेय महादेव मंदिर। यहां शिव भक्ति का वो स्वरूप देखने को मिलता है, जो जीवन, मृत्यु और अमरत्व – तीनों पर भारी है।
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