देवउठनी एकादशी पर उमड़ा श्रद्धा का सैलाब, गूंजे जय विष्णु और हरि नाम, पवित्र स्नान के साथ पंचुका महोत्सव शुरू

प्रयागराज/उत्तर प्रदेश, 2 नवंबर 2025 (रविवार)। देवउठनी एकादशी के पावन अवसर पर रविवार को देशभर में आस्था और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिला। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु के चार महीने के योगनिद्रा से जागने का दिन माना जाता है। इसी कारण इसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस मौके पर देशभर के तीर्थस्थलों और पवित्र नदियों के तटों पर लाखों श्रद्धालुओं ने स्नान-ध्यान कर भगवान विष्णु की आराधना की।

इस वर्ष देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त 1 नवंबर की सुबह 9 बजकर 11 मिनट से प्रारंभ हुआ था, जो 2 नवंबर की सुबह 7 बजकर 31 मिनट तक रहा। उदया तिथि के अनुसार रविवार को एकादशी का पर्व पूरे हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है।

प्रयागराज में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

उत्तर प्रदेश के पवित्र तीर्थ नगरी प्रयागराज में रविवार की भोर से ही यमुना और गंगा घाटों पर स्नान के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। श्रद्धालुओं ने ब्रह्म मुहूर्त में पवित्र स्नान कर भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और मां तुलसी की पूजा-अर्चना की। घाटों पर मां तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह संस्कार संपन्न कराया गया। परंपरा के अनुसार, देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह से शुभ मांगलिक कार्यों की शुरुआत मानी जाती है।

प्रयागराज के दारागंज और त्रिवेणी संगम घाट पर श्रद्धालु परिवार सहित डुबकी लगाते दिखाई दिए। इस अवसर पर उपस्थित एक पुजारी ने कहा —
यमुना घाट पर स्नान का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि देवउठनी एकादशी के दिन यमुना स्नान करने से समस्त पाप नष्ट होते हैं और कार्तिक मास का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

एक श्रद्धालु महिला ने बताया कि उन्होंने परिवार की शांति, समृद्धि और राष्ट्र की प्रगति के लिए प्रार्थना की। उन्होंने कहा, “यह पर्व आत्मशुद्धि और भक्ति का प्रतीक है, हम सभी भगवान विष्णु से कल्याण की कामना कर रहे हैं।”

सोलापुर में चंद्रभागा तट पर भक्तों का सैलाब

महाराष्ट्र के सोलापुर में भी कार्तिक एकादशी का विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। तड़के से ही लाखों भक्त चंद्रभागा नदी में स्नान के लिए पहुंचे। स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने पंढरपुर के विठ्ठल मंदिर में दर्शन किया। मंदिर परिसर में दिनभर विशेष पूजन, आरती और हरिनाम संकीर्तन का आयोजन किया गया। रातभर नदी तट पर भजन-कीर्तन की ध्वनियों से वातावरण भक्तिमय बना रहा। स्थानीय प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सुरक्षा, चिकित्सा और परिवहन की विशेष व्यवस्था की।

एक स्थानीय भक्त ने कहा, “विठ्ठल भगवान का दर्शन करना जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है। चंद्रभागा में स्नान के बाद विठ्ठल-रुक्मिणी के दर्शन से आत्मिक शांति मिलती है।”

पुरी में पंचुका महोत्सव की शुरुआत

ओडिशा के पुरी में देवउठनी एकादशी के साथ ही प्रसिद्ध पंचुका महोत्सव का शुभारंभ भी हुआ। यह महोत्सव पांच दिनों तक चलता है, जो कार्तिक अमावस्या तक जारी रहेगा। पुरी के जगन्नाथ मंदिर में विशेष पूजन और सजावट की गई है। हजारों भक्तों ने मंदिर पहुंचकर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दर्शन किए। भक्तों ने महाप्रसाद ग्रहण किया और पंचुका आरंभ के अवसर पर नदियों में स्नान कर पुण्य अर्जित किया।

मंदिर प्रशासन के अनुसार, पंचुका के इन पांच दिनों में भोजन, व्रत और दान का अत्यधिक महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि इस अवधि में स्नान, उपवास और भक्ति से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

भक्ति, आस्था और संस्कार का संगम

देश के विभिन्न हिस्सों में एकादशी के अवसर पर मंदिरों में विशेष सजावट की गई। हरिद्वार, मथुरा, उज्जैन, वाराणसी और नासिक जैसे प्रमुख तीर्थों में भी लाखों श्रद्धालुओं ने पवित्र स्नान किया। पंडितों के अनुसार, देवउठनी एकादशी के बाद ही विवाह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।

इस प्रकार, देवउठनी एकादशी का यह पावन दिन देशभर में भक्ति, आस्था और प्रकृति के संगम का प्रतीक बना रहा। घाटों पर गूंज रहे हरिनाम संकीर्तन और दीपों की झिलमिलाती रोशनी ने यह संदेश दिया कि —
“जब देव जागे, तो धर्म, प्रेम और सद्भावना भी जगती है।”
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