2 हजार रुपये से अधिक के UPI लेनदेन पर GST लगाने की अफवाहें बेबुनियाद, सरकार ने किया खंडन

नई दिल्ली, 19 अप्रैल 2025 — केंद्र सरकार ने शनिवार को स्पष्ट किया है कि 2,000 रुपये से अधिक के यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस) लेनदेन पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) लगाने का फिलहाल कोई विचार नहीं किया जा रहा है। वित्त मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान में इस प्रकार की चल रही खबरों और अफवाहों को पूरी तरह निराधार, भ्रामक और गलत करार दिया है।

बयान में कहा गया, "यह दावा कि सरकार यूपीआई के माध्यम से किए जाने वाले 2,000 रुपये से अधिक के ट्रांजैक्शन पर जीएसटी लगाने पर विचार कर रही है, पूरी तरह से असत्य और तथ्यों से परे है। वर्तमान में सरकार के समक्ष ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।"

वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि किसी विशेष डिजिटल पेमेंट इंस्ट्रूमेंट, जैसे डेबिट कार्ड या यूपीआई के जरिए होने वाले लेनदेन पर कोई जीएसटी लागू नहीं होता, खासतौर पर तब जब उन पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट (MDR) भी लागू नहीं हो। वर्ष 2020 से पहले पर्सन-टू-मर्चेंट (P2M) ट्रांजैक्शन पर एमडीआर लिया जाता था, लेकिन केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) द्वारा 30 दिसंबर 2019 की अधिसूचना के माध्यम से इन शुल्कों को समाप्त कर दिया गया था, जो जनवरी 2020 से प्रभाव में है।

सरकार का यह कदम यूपीआई आधारित डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित करने की व्यापक नीति का हिस्सा है। वित्त वर्ष 2021-22 से सरकार द्वारा एक विशेष प्रोत्साहन योजना शुरू की गई है, जिसका उद्देश्य कम मूल्य वाले यूपीआई लेनदेन को सुलभ और लाभकारी बनाना है, जिससे छोटे व्यापारियों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ पहुंचे।

इस योजना के तहत सरकार ने बीते वर्षों में लगातार बजट आवंटन बढ़ाया है — वित्त वर्ष 2021-22 में 1,389 करोड़ रुपये, 2022-23 में 2,210 करोड़ रुपये, और 2023-24 में 3,631 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया। इन कदमों से देश के डिजिटल पेमेंट इकोसिस्टम को मजबूती मिली है और भारत ने इस क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अग्रणी भूमिका निभाई है।

ACI Worldwide की 2024 रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में वैश्विक स्तर पर होने वाले रियल-टाइम डिजिटल ट्रांजैक्शनों में भारत की हिस्सेदारी 49 प्रतिशत थी, जो इस बात का प्रमाण है कि भारत डिजिटल भुगतान में एक वैश्विक अग्रणी बन चुका है।

वित्त मंत्रालय के मुताबिक, यूपीआई ट्रांजैक्शन वैल्यू में बीते कुछ वर्षों में भारी वृद्धि देखी गई है — वित्त वर्ष 2019-20 में जहां यह आंकड़ा 21.3 लाख करोड़ रुपये था, वहीं मार्च 2025 तक यह बढ़कर 260.56 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। विशेष रूप से पर्सन-टू-मर्चेंट ट्रांजैक्शन का आंकड़ा 59.3 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है, जो इस प्रणाली में व्यापारियों की बढ़ती भागीदारी और उपभोक्ताओं के भरोसे को दर्शाता है।

इस प्रकार, सरकार की ओर से यह स्पष्ट कर दिया गया है कि डिजिटल भुगतान को और सुलभ और लोकप्रिय बनाने की दिशा में वह लगातार काम कर रही है और इस समय यूपीआई लेनदेन पर किसी भी प्रकार के जीएसटी का बोझ डालने की कोई मंशा नहीं है।
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