बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण क्यों बना जरूरी? सीमावर्ती जिलों में 120% से ज्यादा आधार सैचुरेशन

नई दिल्ली, 10 जुलाई 2025। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया को लेकर जारी बहस अब नए मोड़ पर पहुंच गई है। हाल ही में सामने आए आधार सैचुरेशन (Aadhaar Saturation) के चौंकाने वाले आंकड़ों ने प्रशासन, सुरक्षा एजेंसियों और आम जनमानस में गहरी चिंता पैदा कर दी है।

जहां पूरे राज्य में आधार पंजीकरण की औसत दर लगभग 94% है, वहीं सीमावर्ती और मुस्लिम बहुल जिलों में यह आंकड़ा 120% से भी ज्यादा पहुंच चुका है। यह संकेत देता है कि इन इलाकों में वास्तविक जनसंख्या से अधिक आधार कार्ड जारी किए गए हैं।

किन जिलों में है सबसे ज्यादा गड़बड़ी?
  • किशनगंज : 68% मुस्लिम आबादी | आधार सैचुरेशन – 126%
  • कटिहार : 44% मुस्लिम आबादी | आधार सैचुरेशन – 123%
  • अररिया : 43% मुस्लिम आबादी | आधार सैचुरेशन – 123%
  • पूर्णिया : 38% मुस्लिम आबादी | आधार सैचुरेशन – 121%

इन आंकड़ों का सीधा अर्थ है कि हर 100 व्यक्तियों पर 121-126 आधार कार्ड बनाए गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसका मतलब या तो डुप्लीकेट आधार जारी हुए हैं या फिर गैर-नागरिकों को आधार मिला है।

आधार सैचुरेशन क्या होता है?
आधार सैचुरेशन से तात्पर्य है किसी क्षेत्र की कुल जनसंख्या की तुलना में आधार कार्डधारकों का प्रतिशत। सामान्यत: यह 100% के करीब होता है, लेकिन जब यह इससे ऊपर जाता है तो यह संभावित अनियमितता और पहचान फर्जीवाड़े की ओर इशारा करता है।

क्या यह अवैध घुसपैठ का संकेत है?
बिहार के जिन जिलों में यह असंतुलन देखा जा रहा है, वे बांग्लादेश और नेपाल की सीमा से सटे हुए हैं। लंबे समय से इन इलाकों में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ की आशंका जताई जाती रही है। अब इस अत्यधिक आधार सैचुरेशन ने उन संदेहों को एक बार फिर से मजबूत कर दिया है।

विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं :
  • किसके नाम पर बनाए गए हैं ये अतिरिक्त आधार कार्ड?
  • क्या बिना वैध दस्तावेजों के विदेशी नागरिकों को पहचान पत्र जारी हुए हैं?
  • क्या इन आधार कार्डों का इस्तेमाल मतदाता सूची में शामिल होने या सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में हो रहा है?

क्या यही वजह थी मतदाता पुनरीक्षण की?
केंद्र और चुनाव आयोग द्वारा बिहार में विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण की प्रक्रिया को लेकर जहां विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं, वहीं यह आंकड़े बताते हैं कि चुनावी पारदर्शिता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए यह कदम जरूरी था।

राजनीतिक विवाद और वैचारिक लड़ाई
इस पूरे प्रकरण ने आधार को नागरिकता प्रमाण मानने की बहस को भी हवा दी है। जानकारों का कहना है कि वामपंथी लॉबी और कुछ राजनीतिक दल बार-बार आधार को नागरिकता का प्रमाण बनाने की वकालत करते रहे हैं।

अगर ऐसा होता है, तो अवैध आधारधारी भी भारतीय नागरिक बन सकते हैं, जो संविधान, सुरक्षा और लोकतंत्र – तीनों के लिए खतरे की घंटी है।

पश्चिम बंगाल पर भी नजर
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद पश्चिम बंगाल पर भी नजरें टिकी हैं। ममता बनर्जी सरकार पहले से ही CAA और NRC का विरोध कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि वहां की स्थिति भी बिहार से अलग नहीं हो सकती।

बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण केवल प्रशासनिक कवायद नहीं, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा, नागरिकता की शुचिता और चुनावी पारदर्शिता से जुड़ा बेहद संवेदनशील विषय बन चुका है। आने वाले दिनों में इस पर राजनीतिक और कानूनी बहस और तेज़ होने की संभावना है।
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