श्रावण का पावन महीना महादेव की उपासना और आस्था की पराकाष्ठा का प्रतीक है। इस दौरान जहां शिवालयों में भोलेनाथ के भक्तों की भीड़ उमड़ती है, वहीं बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में नवविवाहिता महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना को लेकर एक विशेष व्रत करती हैं – मधुश्रावणी।
यह परंपरा मिथिलांचल के ब्राह्मण, कर्ण कायस्थ, स्वर्णकार समुदायों में विशेष रूप से प्रचलित है। विवाह के बाद पहली सावन में नवविवाहिता 14 से 15 दिनों तक भगवान शिव और माता गौरी की पूजा पूरे विधि-विधान से करती हैं। इस व्रत की सबसे खास बात यह है कि पूरे अनुष्ठान का संचालन महिला पुरोहित करती हैं, जो न सिर्फ पूजा कराती हैं, बल्कि इससे जुड़ी कथाएं भी सुनाती हैं।
अग्निपरीक्षा से 'शीतल टेमी' तक
मधुश्रावणी अनुष्ठान के अंतिम दिन 'टेमी' की रस्म निभाई जाती है, जिसमें पहले नवविवाहिता के घुटनों को अग्नि के संपर्क में लाकर उनकी तपस्या की परीक्षा ली जाती थी। माना जाता था कि घुटनों पर जितना बड़ा घाव होगा, पति की उम्र उतनी लंबी होगी। हालांकि अब समय के साथ यह परंपरा 'शीतल टेमी' में बदल गई है, जिसमें दीपक की लौ मात्र दिखाकर रस्म पूरी की जाती है।
आस्था के साथ प्रकृति से जुड़ाव
यह पर्व न सिर्फ वैवाहिक जीवन की सफलता का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण चेतना से भी जुड़ा है। पूजा के दौरान महिलाएं मौसमी फूल-पत्तों, जूही और मैनी जैसे पौधों का प्रयोग करती हैं और इन्हें बांस की टोकरी में सजाकर देवी-देवताओं को अर्पित करती हैं।
इस दौरान महिलाएं एक विशेष नियम का पालन करती हैं—वे केवल एक समय भोजन करती हैं, वह भी बिना नमक का। बालों की चोटी पहले दिन जैसी बांधी जाती है, उसे आखिरी दिन तक नहीं खोला जाता। वे जमीन पर सोती हैं, और सुबह-शाम शिव-गौरी की पूजा करती हैं।
बासी फूलों से होती है मनसा देवी की पूजा
इस पर्व की एक अनूठी परंपरा यह भी है कि जहां आमतौर पर पूजा में ताजे फूलों का प्रयोग होता है, वहीं मधुश्रावणी के दौरान मनसा देवी को बासी फूल चढ़ाए जाते हैं। यह परंपरा देवी को विशेष रूप से प्रिय मानी जाती है।
ससुराल से आती है पूजा सामग्री
पूरे अनुष्ठान के लिए नवविवाहिता के ससुराल से सामग्री आती है, जिनमें पूजा के सामान के साथ भोजन का अनाज भी शामिल होता है। हर दिन की पूजा के बाद नवविवाहिता सुहाग की सामग्री—चूड़ी, सिंदूर, बिंदी और विशेष रूप से कच्ची पिसी मेहंदी—अन्य सुहागिनों को बांटती हैं।
पार्वती से मिली परंपरा
पौराणिक मान्यता है कि माता पार्वती ने सर्वप्रथम मधुश्रावणी का व्रत किया था, जिसकी बदौलत उन्हें हर जन्म में शिव को पति रूप में पाने का सौभाग्य मिला। यही कारण है कि आज भी मिथिलांचल की नवविवाहिता इस परंपरा को श्रद्धा, विश्वास और भक्ति के साथ निभाती हैं।
श्रावण में शिवभक्ति और स्त्री सशक्तिकरण का अद्भुत संगम बन चुका है मधुश्रावणी व्रत, जो न केवल पारंपरिक मूल्यों को सहेजता है, बल्कि आधुनिकता में भी अपनी सांस्कृतिक चमक को बनाए हुए है।
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